रुपये में कैसे होगा अंतरराष्ट्रीय व्यापार? केंद्र सरकार का जोर क्यों
यूएस डॉलर (USD) के बजाय भारतीय रुपये (INR) में अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade) को बढ़ावा देने पर केंद्र सरकार ने अपने कदम बढ़ा दिए हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) इस पहल के तरीकों पर चर्चा करने के लिए देश के बैंकों, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालयों सहित हितधारकों के साथ बैठक कर रहा है. बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), भारतीय बैंक संघ, बैंकों के प्रतिनिधि निकाय और उद्योग निकायों के प्रतिनिधि शामिल होंगे.
सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों से कहा जाएगा कि वे निर्यातकों को रुपये के कारोबार पर बातचीत करने के लिए कहें. हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के बाद बदले अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में भारत सरकार ने रुपये में कारोबार को बढ़ाने के विकल्प पर विचार तेज किया हुआ है. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार रुपये में कैसे हो सकता है? साथ ही सरकार क्यों इस पर जोर दे रही है?
क्या है पृष्ठभूमि
भारतीय रिजर्व बैंक ने 11 जुलाई को एक सर्कुलर जारी कर कहा कि उसने "आईएनआर (INR) में चालान, भुगतान और निर्यात / आयात के निपटान के लिए एक अतिरिक्त व्यवस्था करने का फैसला किया है." आरबीआई ने कहा था, "भारत से निर्यात पर जोर देने के साथ वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देना और आईएनआर में वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि का समर्थन करना उसका मकसद है."
भारत और अन्य आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी देशों के बीच रुपये में व्यापार निपटान की अनुमति देने के कदम को मुख्य रूप से रूस के साथ व्यापार को लाभान्वित करने के लिए देखा गया आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी था. इससे डॉलर के बहिर्गमन को रोकने और रुपये के मूल्यह्रास को "बहुत सीमित सीमा" तक धीमा करने में मदद मिलने की उम्मीद थी.
कैसे होगा मौद्रिक लेन-देन
किसी भी देश के साथ व्यापार लेनदेन का निपटान करने के लिए भारत में बैंक व्यापार के लिए भागीदार देश के कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक/बैंकों के वोस्ट्रो खाते खोलेंगे. भारतीय आयातक इन खातों में अपने आयात के लिए INR में भुगतान कर सकते हैं. आयात से होने वाली इन आय का उपयोग भारतीय निर्यातकों को भारतीय रुपये में भुगतान करने के लिए किया जा सकता है. वोस्ट्रो खाता एक ऐसा खाता है जो एक कॉरेस्पॉन्डेंट बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है. उदाहरण के लिए, एचएसबीसी वोस्ट्रो खाता भारत में एसबीआई द्वारा आयोजित किया जाता है.
मौजूदा सिस्टम क्या है
वर्तमान में नेपाल और भूटान जैसे अपवादों के साथ किसी कंपनी द्वारा निर्यात या आयात हमेशा विदेशी मुद्रा में होता है. इसलिए आयात के मामले में भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है. मुख्य रूप से यह यूएस डॉलर है, लेकिन पाउंड, यूरो या येन वगैरह भी हो सकता है. भारतीय कंपनी को निर्यात के मामले में विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाता है और कंपनी उस विदेशी मुद्रा को रुपये में बदल देती है. क्योंकि उसे ज्यादातर मामलों में अपनी आवश्यकताओं के लिए रुपये आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी की आवश्यकता होती है.
अपेक्षित उपयोग
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई के आदेश में आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी ऐसा नहीं कहा गया था कि इस व्यवस्था का मुख्य रूप से रूस के लिए उपयोग किए जाने की उम्मीद थी. "यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर प्रतिबंध हैं और देश स्विफ्ट सिस्टम (विदेशी मुद्रा में भुगतान के लिए बैंकों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रणाली) से दूर है. इसका मतलब है कि भुगतान विदेशी मुद्रा में नहीं करना है और इस व्यवस्था से रूस और भारत दोनों को मदद मिलेगी. ”
व्यवस्था का विस्तार
सबनवीस ने कहा कि इसकी संभावना नहीं है कि इस व्यवस्था को अन्य देशों तक बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं, लेकिन अन्य इसे स्वीकार नहीं कर सकते हैं. क्योंकि उन्हें अपने आयात के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता हो सकती है." उन्होंने कहा कि श्रीलंका भी हमें डॉलर या किसी अन्य विदेशी मुद्रा में भुगतान करना चाहता है. हालांकि, इस व्यवस्था से रुपये की गिरावट को किसी भी हद तक रोकने में मदद की उम्मीद नहीं थी. रुपया सभी वैश्विक मुद्राओं की तरह डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास ( कीमत का गिरना) कर रहा है. इसकी सामान्य प्रवृत्ति अब कई महीनों से लगातार कमजोर होती जा रही है.
रघुराम की बेरुखी से गिरा शेयर बाजार, रुपया और सोना भी टूटा
आरबीआई द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने की घोषणा के साथ्ा ही भारतीय शेयर बाजारों में शुक्रवार को भारी गिरावट देखी गई. शुक्रवार को बांबे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का मुख्य संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 382.93 अंक गिरकर 20263.71 के स्तर पर बंद हुआ.
aajtak.in
- नई दिल्ली,
- 20 सितंबर 2013,
- (अपडेटेड 20 सितंबर 2013, 5:03 PM IST)
आरबीआई द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने की घोषणा के साथ ही भारतीय शेयर आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी बाजारों में शुक्रवार को भारी गिरावट देखी गई. शुक्रवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का मुख्य संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 382.93 अंक गिरकर 20263.71 के स्तर पर बंद हुआ. वहीं निफ्टी भी 103.45 अंक गिरकर 6012.10 के स्तर पर बंद हुआ.
आरबीआई द्वारा रेपो रेट बढा़ये जाने की घोषणा के साथ ही बीएसई के 30 शेयरों वाले सेंसेक्स में 550 से भी ज्यादा अकों की गिरावट देखी गई, निफ्टी भी 173.60 अंक गिरकर 5,942 के स्तर पर आ गया था. हालांकि बाद में निवेशकों कॉन्फिडेंस और बाजार के सेंटिमेंट में थोड़ा सुधार देखने को मिला और बाजार ने कुछ हद तक वापसी की.
शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने अर्ध तिमाही समीक्षा की घोषणा की है. निवेशकों को उम्मीद थी कि आरबीआई कुछ ऐसे कदम उठा सकता है जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी. निवेशकों की इस उम्मीद से गुरुवार को सेंसेक्स अपने तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था.
हालांकि रेपो रेट में वृद्धि के बाद इस उम्मीद पर पानी फिर गया है और बाजार ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी है. निवेशकों को डर है कि ब्याज दर बढ़ने आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी और ऐसे में भारतीय बाजारों में निवेश का उन्हें ज्यादा रिर्टन नहीं मिलेगा. ब्याज दरों में कमी आने से बाजार में मांग भी धीमी पड़ जाएगी, जिसका असर औधोगिक उत्पादन पर भी पड़ेगा.
रुपया कमजोर
रुपये में शुक्रवार को शुरुआती कारोबार से ही कमजोरी देखने को मिली. शुक्रवार को रुपया 59 पैसे कमजोर होकर प्रति डॉलर 62.37 रुपये के स्तर पर आ गया. पिछले कुछ दिनों से रुपये में लगातार मजबूती देखने को मिल रही थी. गुरुवार को रुपये में डॉलर के मुकाबले 1.74 रुपये की मजबूती देखने को मिली थी.
सोना टूटा
सोने में भी मामूली गिरावट देखने को मिली. प्रति दस ग्राम सोने की कीमत 99 रुपये गिरकर 30,124 के स्तर पर आ गई. बुलियन बाजार के जानकारों के अनुसार कमजोर ग्लोबल सेंटिमेंट और प्रॉफिट बुकिंग की वजह से सोने में गिरावट देखने को मिली.
SBI का बड़ा फैसला, अपने ब्याज को रेपो दर से जोड़ा, जानें क्या होगा असर
मुंबई। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपनी जमा दरों और छोटी अवधि के कर्ज की दरों को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रेपो दर से जोड़ने की घोषणा की है। यह अपनी तरह का पहला मामला है, जब किसी बैंक ने अपनी ब्याज दर को रेपो दर से जोड़ा है। बैंक ने कहा कि नई दरें एक मई से प्रभावी होंगी। नई दर का लाभ हालांकि उन्हीं बचत कर्ताओं को मिलेगा, जिनका अकाउंट बैलेंस एक लाख रुपये से अधिक है।
बैंक के इस कदम से आरबीआई की नीतिगत ब्याज दर में होने वाली कटौती या बढ़ोतरी को ग्राहकों तक पहुंचाने की प्रक्रिया में तेजी आएगी। बैंक अब तक आरबीआई की दरों में कटौती का लाभ ग्राहकों तक तुरंत नहीं पहुंचा पा रहे थे, जिस पर आरबीआई ने कई बार नाराजगी जताई थी। बैंक ने एक बयान में कहा कि हम जमा दर और छोटी अवधि के ऋण की ब्याज दर को आरबीआइ की रेपो दर से जोड़ने में अग्रणी रहे हैं।
आरबीआई की रेपो दर अभी 6.25 फीसद है। बैंक ने कहा कि उसने एक लाख रुपये से अधिक के सभी कैश क्रेडिट अकाउंट्स और ओवरड्राफ्ट को भी रेपो दर से जोड़ने का फैसला किया है। इसके तहत फ्लोर रेट रेपो दर से 2.25 फीसद अधिक होगा। इसके ऊपर ग्राहक के रिस्क प्रोफाइल के आधार आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी पर मौजूदा पद्धति से हर ग्राहक के लिए दर तय होगी।
बैंक ने कहा कि छोटे बचत कर्ताओं और कर्जधारकों को दर में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा देने के लिए एक लाख रुपये तक की जमा और कर्ज की दर को रेपो दर से नहीं जोड़ा गया है।
RBI के नए फ़ैसले से, 9% तक मिलेगा FD Interest Rate, जानिए लागू हुआ नया सम्पूर्ण स्लैब
क्या महंगाई के मामले में मामला हाथ से निकल रहा है? परिस्थितियां कुछ ऐसी ही इशारा कर रही हैं. देश की अर्थव्यवस्था को बुधवार को खुदरा महंगाई और औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों के रूप में दोहरे झटके का सामना करना पड़ा.
आंकड़ों के मुताबिक, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते खुदरा महंगाई पांच महीने के सबसे ऊपरी स्तर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि औद्योगिक उत्पादन पिछले 18 माह में पहली बार घट गया. चिंता की बात ये है कि खुदरा महंगाई लगातार 9वें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दो से छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. ऐसे में सवाल है कि आरबीआई आगे क्या करेगा. एक नजर में जवाब तो यही है कि रेपो रेट बढ़ाएगा. और क्या करेगा आरबीआई, आइए जानते हैं.
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सरकार को देना होगा जवाब
महंगाई के लगातार नौवें महीने संतोषजनक स्तर से ऊपर रहने के बीच रिजर्व बैंक को अब केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर इसका विस्तार से कारण बताना होगा. रिपोर्ट में यह बताना होगा कि महंगाई को निर्धारित दायरे में क्यों नहीं रखा जा सका और उसे काबू में लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं.
रिजर्व बैंक के कानून के तहत अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया गया है, तो आरबीआई को केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर उसका कारण और महंगाई को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से जानकारी देनी होती है. मॉनिटरी पॉलिसी के 2016 में लागू होके बाद से यह पहली बार होगा कि आरबीआई को रिपोर्ट के जरिये सरकार को अपने कदमों के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी
अलग से होगी MPC की बैठक
केंद्र सरकार की तरफ से रिजर्व बैंक को मिली जिम्मेदारी के तहत आरबीआई को खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है. अब मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) के सचिव को आरबीआई कानून के तहत इस बारे में चर्चा के लिए एमपीसी की अलग से बैठक बुलानी होगी और रिपोर्ट तैयार कर उसे केंद्र सरकार को भेजना होगा. एमपीसी की बैठक में खुदरा महंगाई पर गौर किया जाता है.
एमपीसी की एक दिन की बैठक दिवाली के बाद हो सकती है क्योंकि केंद्रीय बैंक के वरिष्ठ अधिकारी इस समय अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की बैठकों में भाग लेने के लिए अमेरिका में हैं. पिछले महीने, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि महंगाई लक्ष्य में चूक को लेकर केंद्र को भेजे जानी वाली रिपोर्ट दो पक्षों के बीच का गोपनीय मामला है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.
कामकाज पर उठेंगे सवाल
अगर महंगाई औसतन लगातार तीन तिमाहियों तक निर्धारित ऊपरी सीमा से अधिक या निचली सीमा से नीचे रहती है, इसे आरबीआई की तरफ से महंगाई को निर्धारित दायरे में रखने को लेकर मिली जिम्मेदारी में चूक माना जाएगा. केंद्रीय बैंक महंगाई को काबू में लाने के लिए मई से ही नीतिगत दर यानी कि रेपो रेट में वृद्धि कर रहा है. उसने अबतक नीतिगत दर 1.9 प्रतिशत बढ़ाई है जिससे रेपो दर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है.
रेपो रेट में वृद्धि का विकल्प
महामारी के शुरुआती महीनों में तीन तिमाही से अधिक समय तक महंगाई लक्ष्य के दायरे आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी से बाहर रही थी. लेकिन लॉकडाउन के कारण आंकड़ा जुटाने में तकनीकी कमियों के कारण उस समय आरबीआई को रिपोर्ट नहीं देनी पड़ी थी. इस बार ऐसा नहीं होगा और आरबीआई को रिपोर्ट देनी होगी. अगला कदम रेपो रेट में बढ़ोतरी का है. माना जा रहा है कि दिसंबर में आरबीआई फिर एक आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी बार रेपो रेट में बढ़ोतरी कर सकता है. पूरी दुनिया में जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है और उसे काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, उसे देखते हुए भारत में भी इसमें वृद्धि जारी है. इससे लोन महंगा होने की संभावना है और ग्रोथ पर भी उलटा असर होने की आशंका है
9% तक हो जाएगा FD
AU Small Finance Bank FD For Senior Citizen (for amounts less than INR 2 Crore)*
Applicable Interest Rates on Fixed Deposits w.e.f. 10 th October, 2022
Tenure Bucket | Interest Rates | Interest Rates (Annualized) |
7 Days to 1 Month 15 Days | 4.25% | – |
1 Month 16 Days to 3 Months | 4.75% | – |
3 Months 1 Day to 6 Months | 5.50% | 5.61% |
6 Months 1 Day to 12 Months | 6.35% | 6.50% |
12 Months 1 Day to 15 Months | 7.60% | 7.82% |
15 Months 1 Day to 18 Months | 7.45% | 7.66% |
18 Months 1 Day to 24 Months | 7.45% | 7.66% |
24 Months 1 Day to 36 Months | 8.00% | 8.24% |
36 Months 1 Day to 45 Months | 8.00% | 8.24% |
45 Months 1 Day to less than 60 Months | 7.45% | 7.66% |
60 Months to 120 Months | 7.45% | 7.66% |
अगर महंगाई पर कंट्रोल करने के लिए आरबीआई के कदम से रुपये में मामूली तेजी आरबीआई रेपो रेट में बदलाव करता है और अगर इसे 0.5% भी बढ़ाता है. तो NBFC और Small Finance Bank के द्वारा दिया जाने वाला ब्याज दर फिक्स डिपॉजिट पर 9% के आसपास या उससे थोड़ा ऊपर और जा सकता है. ब्याज दरों में बदलाव करने से बैंकों के पास आम जनों के द्वारा डिपॉजिट किए जाने वाले पैसे बढ़ेंगे और बैंक अपना कारोबार महंगाई के दौर में भी जारी रख सकेगा.
बैंकों का पुनर्पूंजीकरण सकारात्मक कदम
नई दिल्ली : सरकार द्वारा हाल ही में सरकारी बैंकों के पुर्नपूजीकरण के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गर्वनर बिमल जालान ने शनिवार को कहा कि इस कदम की बहुत पहले से अपेक्षा थी। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकॉनमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा आयोजित […]
नई दिल्ली : सरकार द्वारा हाल ही में सरकारी बैंकों के पुर्नपूजीकरण के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गर्वनर बिमल जालान ने शनिवार को कहा कि इस कदम की बहुत पहले से अपेक्षा थी। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकॉनमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा आयोजित भारतीय अर्थव्यवस्था के 2017-18 के मध्य वर्ष की समीक्षा में जालान ने कहा, वर्तमान परिस्थितियों में बैंकों का पुर्नपूजीकरण बहुत ही सकारात्मक कदम है। लेकिन हमने इसे पहले क्यों नहीं किया।
उन्होंने कहा कि यह कदम 2014 में ही उठाया जाना चाहिए था और कहा कि इसमें तीन साल की देरी हुई। उन्होंने हालांकि सरकारी बैंकों की सेहत सुधारने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा, जो भी कार्रवाई की जा रही है, वे सभी बहुत ही सकारात्मक हैं। सरकारी बैंकों के बढ़ते एनपीए (फंसे हुए कर्जे) पर जालान ने कहा कि इसके तेजी से बढ़ने के कारणों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
जालान के मुताबिक केंद्र में बहुमत सरकार होने के कारण दीर्घकालिक सुधार, कठिन सुधार, राजनीतिक सुधार, आर्थिक सुधार, प्रशासकीय सुधार और सरकारी कंपनियों में सुधार अब काफी व्यवहार्य हैं। उन्होंने कहा कि यदि भारत को भविष्य में अपनी पूर्ण क्षमताओं का दोहन करना है तो मध्यम और दीर्घकालिक अवधि में कुछ बुनियादी मुद्दों से निपटना आवश्यक है। जालान ने कहा, हमें समय पर कार्रवाई और क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है। राजनीतिक नेतृत्व नौकरशाही और प्रशासनिक सुधारों की प्रगति की निगरानी कर सकता है।
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