कुवैती दीनार को व्यापक रूप से दुनिया की सबसे शक्तिशाली मुद्रा माना जाता है। कुवैती दीनार को संक्षेप में KWD भी कहते हैं। कुवैती दिनार मुद्रा को पहली बार वर्ष 1960 में यूनाइटेड किंगडम से स्वतंत्रता लेने के बाद पेश किया गया था और तब से यह दुनिया की सबसे मूल्यवान मुद्रा बन गई है।
रिजर्व बैंक ने 9 नवंबर से बाजार का समय बढ़ाया, यहां जानें नई टाइमिंग
By: एजेंसी | Updated at : 02 Nov 2020 10:25 PM (IST)
मुंबई: रिजर्व बैंक ने सोमवार को विभिन्न रिण बाजारों के साथ ही मुद्रा बाजार में कारोबार का समय नौ नवंबर से बढ़ाने की घोषणा की. देश के लॉकडाउन से धीरे धीरे बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद रिजर्व बैंक ने यह कदम उठाया है.
कोविड- 19 महामारी के साथ जुड़े स्वास्थ्य जोखिम को देखते हुये रिजर्व बैंक ने उसके नियमन के तहत आने वाले विभिन्न बाजारों में सौदों का समय 7 अप्रैल 2020 से कम कर दिया था. तब बाजार खुलने का समय नौ बजे के बजाय प्रात: दस बजे कर दिया गया और बंद होने का समय भी दोपहर दो बजे कर दिया गया था.
रिजर्व बैंक ने कहा, ‘‘लॉकडाउन की चरणबद्ध वापसी तथा लोगों के आवागमन और कार्यालयों में कामकाज को लेकर प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के बाद यह तय किया गया है कि उसके नियमन वाले बाजारों में कामकाज के घंटों को चरणबद्ध ढंग से बहाल किया जाये.’’
रिजर्व बैंक ने कहा है कि बाजार खुलने का समय नौ बजे के बजाय दस बजे ही रहेगा. वाणिज्यिक प्रपत्रों और जमा प्रमाणपत्रों, कार्पोरेट बॉंड में रेपो कारोबार, सरकारी प्रतिभूतियों, विदेशी मुद्रा, भारतीय रुपयें में कारोबार, विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव्ज, रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव्ज और ‘कॉल, नोटिस, टर्म मनी’ में प्रात: दस बजे से 3.30 बजे तक कारोबार होगा.
Published at : 02 Nov 2020 10:25 PM (IST) Tags: new market timing timing of market Reserve Bank RBI हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
Explained: 75 साल में कितना गिर गया रुपया, आज 80 रुपए के करीब एक डॉलर, मुद्रा बाज़ारों का इतिहास जानिए इसका अब तक का इतिहास
Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Published on: August 13, 2022 12:05 IST
Photo:INDIA TV one dollar is near to 80 rupees
Highlights
- आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
- रुपये की वैल्यू को तब की केंद्र सरकार करती थी मॉनिटर
- पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी
Explained: भारतीय करेंसी (Indian Currency) की वैल्यू आज 79.50 रुपये प्रति डॉलर (Dollar) हो गई है। आप मुद्रा बाज़ारों का इतिहास जब इस आर्टिकल को पढ़ रहे होंगे, तब शायद इसमें कोई बदलाव आ चुका होगा। देश आज 75वां स्वतंत्रता दिवस (Independent Day) मनाने जा रहा है। जब देश आजाद हुआ था तब रुपये की वैल्यू एक डॉलर के बराबर हुआ करती थी। इन 75 सालों में रुपये की कीमत प्रति डॉलर 80 पार कर गई है। देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) ने एक बार संसद में कहा था कि जब देश की करेंसी गिर रही होती है तब सिर्फ रुपये का नुकसान नहीं होता है, बल्कि उस देश की मान प्रतिष्ठा भी गिरने लगती है। ऐसे में आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि भारतीय मुद्रा दिनों-दिन इतना कमजोर क्यों होता गया? इसका अब तक का इतिहास (History) कैसा रहा है?
आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुआ था।
1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन जब 1962 और फिर 1965 का युद्ध भारत ने लड़ा तब देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपये की कीमत 6.36 रुपये प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार दुबारा से रुपये की कीमत को कम करने का निर्णय लिया। उसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपये हो गई। आपको बता दें, उस वक्त रुपये की वैल्यू को सरकार ही मॉनिटर किया करती थी कि रुपये की वैल्यू मार्केट में एक डॉलर के बराबर कितनी होगी। उसे फिक्ड एक्सचेंज रेट सिस्टम (Fixed Exchange Rate System) कहते हैं।
पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी
देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।
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महामारी कोरोना वायरस के घबराया रुपया, इतिहास में पहली बार 76/$ के पार मुद्रा बाज़ारों का इतिहास बंद
देश में कोरोना वायरस के तेजी से बढ़ते मामलों और घरेलू इक्विटी बाजार में भारी बिकवाली के चलते रुपए पर दबाव देखने को मिला. अगस्त 2013 के बाद एक दिन में रुपए की यह सबसे बड़ी गिरावट है.
इस साल रुपया अबतक 10 फीसदी से ज्यादा टूट चुका है.
कोरोना वायरस के चलते हर जगह कोहराम मचा हुआ है. सोमवार को शेयर बाजार धड़ाम हो गए. वहीं, रुपया भी डॉलर के मुकाबले लुढ़कता नजर आया. आज रुपया ने इतिहास में पहली बार 76 रुपए प्रति $ का भाव तोड़ दिया. रुपया अपने अब तक के नए लो पर पहुंच गया है. डॉलर के मुकाबले रुपए में 1 रुपए 02 पैसे की गिरावट देखी गई. कारोबार के अंदर में भारी गिरावट के साथ 76.22 के स्तर पर पहुंच गया.
डॉलर नहीं ये है विश्व की सबसे ताकतवर करेंसी, जानिए इसके बारे में
Kuwait Dinar: कुवैती दिनार विश्व की सबसे शक्तिशाली करेंसी है।
- विनिमय के माध्यम के रूप में करेंसी का उपयोग किया जाता है।
- कुवैती दिनार है सबसे शक्तिशाली करेंसी।
- कुवैती दीनार 246 रुपए के बराबर है।
कौन सी करेंसी है विश्व की सबसे शक्तिशाली करेंसी?
अक्सर हम यो सोचते हैं कि विश्व के मुद्रा बाज़ारों का इतिहास सबसे मजबूत देश की करेंसी ही विश्व की सबसे शक्तिशाली करेंसी होगी लेकिन ऐसा नहीं है। विश्व का छोटा सा देश कुवैत जिसकी करेंसी यानी मुद्रा कुवैती दिनार विश्व की सबसे शक्तिशाली मुद्रा है।
मुद्रा बाज़ारों का इतिहास
इतिहास से रू-ब-रू कराती हैं मुद्राएं
मुद्रा का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द 'मनी' है, जो लैटिन भाषा के मोनेटा शब्द से बना है। मोनेटा देवी जूनो का प्रारंभिक नाम था जिन्हें इटली में स्वर्ग की देवी माना जाता था तथा इनके मंदिर में ही सिक्कों की ढलाई का कार्य भी किया जाता था, अतएव देवी जूनो के मंदिर में जिस मुद्रा का निर्माण होता था, उसे ही मोनेटा कहा जाने लगा और बाद में इसी को 'मनीÓ (मुद्रा) कहा गया। प्राचीन भारत में केवल छोटी ताम्र मुद्राएं तथा वृषभ चक्र आदि चिन्हों से अंकित मिश्रित चांदी की मुद्राएं प्रचलित थीं पर कालांतर में यूनानी प्रभाव के फलस्वरूप भारतीयों शासकों ने उचित आकृति तथा मुद्रण के सिक्कों का प्रचलन किया। यूनान के संपर्क में आने के पश्चात् भारतीयों ने ग्रीक शब्द द्रख्म को अपने द्रम्म शब्द में स्वीकार किया। 'दाम' इसी द्रम्म मुद्रा बाज़ारों का इतिहास का अपभ्रंश माना जाता है। तदंतर मुद्रा सुडौल, कलात्मक एवं अभिलेख युक्त होने लगी। गुप्त, कुषाण, चोल और अन्य भारतीय राजवंशों ने इसका अनुसरण भी किया। यूनानी नरेश मेनेन्द्र के सिक्के भारतीय पश्चिमोत्तर राज्यों के बाजारों में उसके निधन के सौ वर्षों बाद तक भी प्रचलित रहे। मुद्राएं इतिहास के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करती हैं। साहित्य में वर्णित घटनाओं और तिथियों के अभाव में मुद्राएं ही हमें इतिहास के ज्ञान से रू-ब-रू करती हैं। सल्तनत काल में दक्षिण भारत और उड़ीसा के हिन्दू राजाओं की मुद्राओं से पता चलता है कि मुसलमानों ने सभी ग्रंथों का सृजन अपने ही दृष्टिकोण से किया है और हिन्दुओं की राजनीतिक हलचल की अवहेलना की है। इस काल के मुस्लिम सिक्कों के बारे में लेनपूल ने लिखा है, 'वास्तव में नियमानुसार हम मुस्लिम सिक्कों को उन वंशों के वास्तविक इतिहास के आधार के रूप में ग्रहण कर सकते हैं जिनके द्वारा वे चलाये गये थे। मुद्राएं स्वर्ण, रजत, ताम्र, मिश्रित धातुओं की मिलती हैं। प्राय: सभी मुद्राओं पर तिथियां अंकित रहती हैं जिससे सम्राटों के तिथिबद्ध इतिहास की जानकारी मिलती है। स्वर्ण मुद्राओं से राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता का ज्ञान होता है। मुद्राओं द्वारा तत्कालीन धार्मिक स्थिति का भी बोध होता है क्योंकि उन मुद्राओं पर लक्ष्मी, शिव, बैल आदि धार्मिक चिन्ह मिलते हैं। समुद्रगुप्त की वे मुद्राएं, जिन पर वह वीणा बजाता हुआ चित्रित है, उसके काव्य-प्रेम का प्रमाण है। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की रोमन स्वर्ण मुद्राएं भारत तथा रोम की मैत्री का प्रमाण हैं। मुद्राओं द्वारा शासकों के शासन विस्तार का भी ज्ञान होता है क्योंकि देश मुद्रा बाज़ारों का इतिहास के जितने भू-भाग में एक शासक की मुद्राएं अधिक मात्र में प्राप्त होंगी, उतने भू-भाग पर उस शासक का अधिकार रहा होगा। कुछ मुद्राओं द्वारा शासकों, राजाओं की महान उपाधियों का भी ज्ञान प्राप्त होता है। आज के सिक्कों में परिवार नियोजन, विकलांगता, साक्षरता, महत्त्वपूर्ण दिवसों को अलग-अलग ढंग से चित्रित किया जाता है जो एक जमाने में इतिहास के ज्ञान की बात हो जायेगी।
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