IPO में इन्वेस्ट करने के लिए हमारे पास एक डीमैट अकाउंट होना चाहिए, और आपने जिस स्टॉक ट्रेडिंग एप्स से अपना डीमैट अकाउंट ओपन करवाया है | उस स्टॉक ट्रेडिंग एप्स से आप IPO में इन्वेस्ट कर सकते हैं |

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सेकंडरी बाजार ट्रेडिंग यांत्रिकी, आदेश के प्रकार, लघु बिक्री - Secondary Market Trading Mechanics, Order Types, Short Selling

प्राइमरी बनाम सेकेंडरी मार्केट होता है। कोई कंपनी पहली बार लिस्ट होने के लिए पब्लिक इश्यू लाती है उसे प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट प्राइमरी मार्केट कहते हैं। आईपीओ और पब्लिक इश्यू प्राइमरी मार्केट में लाए जाते हैं। लिस्ट होने के बाद शेयर सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड करते हैं। सेकेंडरी मार्केट में रोजाना शेयरों की खरीद-बिक्री होती है। भारत में बीएसई - एनएसई सेकेंडरी मार्केट हैं।

सेकेंडरी मार्केट में ट्रेडिंग 2 तरह की होती है। ऑफलाइन ट्रेडिंग और ऑनलाइन ट्रेडिंगा शेयरों की खरीद-बिक्री के लिए ट्रेडिंग, डीमैट और बैंक अकाउंट आपस में लिंक होना जरूरी होता है। ट्रेडिंग अकाउंट ब्रोकर के पास खुलता है।

ऑफलाइन ट्रेडिंग ट्रेडर्स खुद नहीं करते वह ट्रेडर्स ब्रोकर को फोन पर शेयर खरीदने को कहता है।

Mutual Funds ने नवंबर में बढ़-चढ़कर IPO पर लगाए दांव, जानिए क्यों सेकेंडरी मार्केट प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट से हुए दूर

पिछले महीने के अंत में, म्यूचुअल फंड्स की होल्डिंग की वैल्यू ग्लोबल हेल्थ (Global Health) में सबसे ज्यादा 980 करोड़ रुपये थी

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Mutual funds : इंडेक्स के नए ऑल टाइम हाई पर पहुंचने के साथ, सेंकेंडरी मार्केट में खासा जोश देखने को मिल रहा है। हालांकि, नवंबर में इसका पॉजिटिव असर प्राइमरी मार्केट पर भी दिखा। इस महीने में लगभग नौ लिस्टिंग देखने को मिलीं। ग्रांथ थ्रॉनटन (Grant Thronton) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह 2022 के किसी महीने में सबसे ज्यादा लिस्टिंग थीं और बीते 11 साल में चौथा सबसे बड़ा आंकड़ा था। हालांकि, बीते साल यानी 2021 की तुलना में प्राइमरी मार्केट खासा पीछे रहा है। 2022 में अभी तक 32 IPO आ चुके हैं और 7.6 अरब डॉलर जुटाए गए हैं। इसकी तुलना में 2021 में 53 आईपीओ के जरिये 15.4 अरब डॉलर जुटाए गए थे।

पैडअप कैपिटल

कंपनी की टोटल कैपिटल कई चीजों से मिलाकर बनती है जिनमें प्रमोटरों द्वारा निवेश की गई धनराशि, लोन द्वारा प्राप्त की गई धनराशि, तथा शेयर जारी करके प्राप्त की गई धनराशि आदि. इसमें कंपनी जो धनराशि शेयर जारी करके हासिल करती है उसे पेडअप कैपिटल कहते हैं.

जब कोई कंपनी धन प्राप्त करने के लिये शेयर जारी करती है तो उसे कैपिटल इश्यू कहा जात है.

प्रीमियम इश्यू क्या है?

जब कंपनी नये शेयरों की कीमत फेस वैल्यू से ऊपर रखकर जारी करती है तो ऐसे इश्यू को प्रीमियम इश्यू कहते हैं. शेयर की फेस वैल्यू से ऊपर रखी गई कीमत उस शेयर का प्रीमियम कहलाती है.

आसान शब्दों में कहें तो मान लीजिये कोई कंपनी प्राइमरी मार्केट में कोई नया पब्लिक इश्यू लाती है एवं उसका प्राइस बैंड 75 से 80 रूपये तक रखती है जबकि शेयर की फेस वैल्यू 10 रूपये है तो ऐसे में 65 से 70 रूपये रूपये प्रति शेयर पर प्रीमियम है. यह प्रीमियम शेयर की बुक वैल्यू और पिछले तीन सालों में शेयर की कीमत आदि के आधार पर तय किया जाता है.

ओवर सबस्क्राइब्ड इश्यू किसे कहते हैं?

कंपनी जब मार्केट में कोई भी इश्यू जारी करती हैं तो उनकी एक निर्धारित शेयर मात्रा होती है. लेकिन कई बार कंपनी में कंपनी के पास शेयर की संख्या से ज्यादा निवेश के लिये आवेदन पहुच जाता है तो उस इश्यू प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट को ओवर सबस्क्राइब्ड इश्यू कहते हैं.

मान लीजिये कंपनी ने 3 करोड़ रूपये का इश्यू जारी किया और उसके लिये 3 रूपये की कीमत से 1 करोड़ शेयर जारी किये. लेकिन निवेशकों की संख्या ज्यादा हो गई और कंपनी के पास शेयर खरीदने के लिये ज्यादा आवेदन हो गये तो इस प्रकार के इश्यू को ओबर सबस्क्राइब्ड इश्यू कहते हैं. ऐसे में कपंनी लाॅटरी सिस्टम के माध्यम से शेयरों को बांटती है. इसमें उन लोगों को पहले वरीयता दी जाती है जिन्होने ज्यादा शेयर खरीदने के लिये आवेदन किया था.

IPO में इन्वेस्ट करने के लिए किन बातों को ध्यान में रखें ?

1) IPO से शेयर खरीदने के लिए हमें एप्लीकेशन देनी होती है | जिसमें कोई जरूरी नहीं कि आप को शेयर मिल ही जाएंगे, यह सब शेयर की अवेलेबिलिटी पर निर्भर करता है |

2) IPO में शेयर को हमें क्वांटिटी साइज के हिसाब से खरीदना होता है | मान लीजिए – किसी xyz कंपनी की क्वांटिटी साइज 20 है | तो फिर आप को कम-से-कम 20 शेयर खरीदने होंगे और अगर आप ज्यादा खरीदना चाहते हैं | तो फिर आपको 20 के मल्टीपल में खरीदने होंगे जैसे कि 20, 40, 60…|

3) IPO में शेयर को खरीदने की मैक्सिमम लिमिट भी होती है |

4) जरूरी नहीं कि आपने जितने शेयर खरीदने के लिए अप्लाई किया है | उतने मिल जाए उससे कम भी मिल सकते हैं | यह सब शेयर की अवेलेबिलिटी पर निर्भर करता है |

OFS क्या होता है?

OFS का फुल फॉर्म – ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale) होता है | OFS में जो कंपनी प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट पहले से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट है | उसके प्रमोटर्स अपना stake बेच कर लोगों से प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट पैसा उठाते हैं, और पैसे सीधे प्रमोटर्स के पास जाते है | OFS की शुरुआत 2012 में सेबी के द्वारा की गई थी | OFS से मार्केट कैपिटलाइजेशन की टॉप 200 कंपनी ही अपना stake बेच सकती है | OFS में पुराने शेयर ही यीशु होते हैं | इसमें प्रमोटर्स की हिस्सेदारी लोगों को ट्रांसफर की जाती है |

मान लीजिए किसी – xyz कंपनी के प्रमोटर का stake 60% है, और उसने 5% stake के बदले लोगों प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट से पैसे उठाएं | तो इस तरह प्रमोटर की stake 60% से कम होकर 55% ही रह गई |

FPO क्या होता है?

FPO का फुल फॉर्म – फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (Follow On Public Offer) होता है | FPO जब कोई स्टॉक एक्सचेंज लिस्टेड कंपनी फिर से पब्लिक से पैसा उठाती है, तो उसे FPO कहते हैं |

मान लीजिए – किसी xyz कंपनी ने पहले ही IPO के जरिए पब्लिक से पैसा उठाया है, और अब फिर से अपने शेयर को बेचकर पब्लिक से पैसा उठाना चाहती है | तो वह FPO के जरिए उठा सकती है | FPO में नए शेयर यीशु होते हैं |

IPO में इन्वेस्ट करने के लिए किन बातों को ध्यान में रखें ?

1) IPO से शेयर खरीदने के लिए हमें एप्लीकेशन देनी होती है | जिसमें कोई जरूरी नहीं कि आप को शेयर मिल ही जाएंगे, यह सब शेयर की अवेलेबिलिटी पर निर्भर करता है |

2) IPO में शेयर को हमें क्वांटिटी साइज के हिसाब से खरीदना होता है | मान लीजिए – किसी xyz कंपनी की क्वांटिटी साइज 20 है | तो फिर आप को कम-से-कम 20 शेयर खरीदने होंगे और अगर आप ज्यादा खरीदना चाहते हैं | तो फिर आपको 20 के मल्टीपल में खरीदने होंगे जैसे कि 20, 40, 60…|

3) IPO में शेयर को खरीदने की मैक्सिमम लिमिट भी होती है |

4) जरूरी नहीं कि आपने जितने शेयर खरीदने के लिए अप्लाई किया है | उतने मिल जाए उससे कम भी मिल सकते हैं | यह सब शेयर की अवेलेबिलिटी पर निर्भर करता है |

OFS क्या होता है?

OFS का फुल फॉर्म – ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale) होता है | OFS में जो कंपनी पहले से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट है | उसके प्रमोटर्स अपना stake बेच कर लोगों से पैसा उठाते हैं, और पैसे सीधे प्रमोटर्स के पास जाते है | OFS की शुरुआत 2012 में सेबी के द्वारा की गई थी | OFS से मार्केट कैपिटलाइजेशन की टॉप 200 कंपनी ही अपना stake बेच सकती है | OFS में पुराने शेयर ही यीशु होते हैं प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट | इसमें प्रमोटर्स की हिस्सेदारी लोगों को ट्रांसफर की जाती है |

मान लीजिए किसी – xyz कंपनी के प्रमोटर का stake 60% है, और उसने 5% stake के बदले लोगों से पैसे उठाएं | तो इस तरह प्रमोटर की stake 60% से कम होकर 55% ही रह गई |

FPO क्या होता है?

FPO का फुल फॉर्म – फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (Follow On Public Offer) होता है | FPO जब कोई स्टॉक एक्सचेंज लिस्टेड कंपनी फिर से पब्लिक से पैसा उठाती है, तो उसे FPO कहते हैं |

मान लीजिए – किसी xyz कंपनी ने पहले ही IPO के जरिए पब्लिक से पैसा उठाया है, और अब फिर से अपने शेयर को बेचकर पब्लिक से पैसा उठाना चाहती है | तो वह FPO के जरिए उठा सकती है | FPO में नए शेयर यीशु होते हैं |

प्राइमरी मार्केट और सेकेंडरी मार्केट क्या होता है?

Primary मार्केट क्या होता है ?Secondary मार्केट क्या होता है?
प्राइमरी मार्केट में नए शेयर और बॉन्ड यीशु किए जाते हैं |सेकेंडरी मार्केट में पहले से ही यीशु हुए बांड और शेयर ट्रेड होते हैं |
प्राइमरी मार्केट को न्यू यीशु मार्केट भी कहते हैं |सेकेंडरी मार्केट को आफ्टर मार्केट भी कहते हैं |
प्राइमरी मार्केट में हम शेयर को सिर्फ खरीद सकते हैं बेच नहीं सकते |सेकेंडरी मार्केट में शेयर को खरीदा और बेचा जा सकता है |
प्राइमरी मार्केट में इन्वेस्ट किया हुआ पैसा सीधे कंपनी के पास जाता हैसेकेंडरी मार्केट प्राइमरी और सेकंडरी मार्केट में इन्वेस्ट किया गया पैसा एक इन्वेस्टर से दूसरे इन्वेस्टर के पास जाता है |
प्राइमरी मार्केट में शेयर का प्राइस कंपनी डिसाइड करती है |सेकेंडरी मार्केट में शेयर की प्राइस डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करती है|
प्राइमरी मार्केट में कंपनी और इन्वेस्टर के बीच ट्रांजैक्शन होता है |सेकेंडरी मार्केट में शेयर और पैसे दोनों ही इन्वेस्टर के बीच में ट्रांजैक्शन होता है |
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