ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. India.Com पर विस्तार से पढ़ें व्यापार की और अन्य ताजा-तरीन खबरें

चुनौतियों का सामना

Market Risk- मार्केट रिस्क

मार्केट रिस्क क्या होता है?
मार्केट रिस्क (Market Risk) या बाजार जोखिम यह संभावना है कि कोई व्यक्ति या अन्य संस्था वित्तीय बाजारों में निवेश के समग्र प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले कारकों के कारण नुकसान का अनुभव करेगा।बाजार जोखिम या संस्थागत जोखिम एक ही साथ समस्त बाजार के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। बाजार जोखिम को विविधीकरण के कारण खत्म नहीं किया जा सकता।

विशिष्ट जोखिम या अप्रणालीगत जोखिम में किसी विशिष्ट सिक्योरिटी का प्रदर्शन शामिल रहता है और इसे डायवर्सिफिकेशन के जरिये कम किया जा सकता है। मार्केट रिस्क ब्याज दरों, एक्सचेंज दरों, भूराजनैतिक घटनाओं या मंदी के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।

मार्केट रिस्क को समझना
मार्केट रिस्क और स्पेसफिक रिस्क (अप्रणालीगत) निवेश जोखिम के दो प्रमुख वर्ग हैं। मार्केट रिस्क जिसे प्रणालीगत जोखिम भी कहा जाता है, को डायवर्सिफिकेशन के जरिये खत्म नहीं किया जा सकता। हालांकि अन्य तरीकों से इसे हेज किया जा वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? सकता है। मार्केट रिस्क के स्रोतों में मंदी, राजनीतिक भूचाल, ब्याज दरों में परिवर्तन, प्राकृतिक आपदायें और आतंकी हमले शामिल हैं। प्रणालीगत या मार्केट रिस्क एक ही समय पूरे बाजार को प्रभावित कर सकता है। इसका विपरीत अप्रणालीगत जोखिम होता है जो किसी विशिष्ट कंपनी या उद्योग के लिए अनूठा होता है। इसे निवेश पोर्टफोलियो के संदर्भ में स्पेसफिक रिस्क, डायवर्सिफाइएबल रिस्क या रेजीडुअल रिस्क भी कहा जाता है।

मेक इन इंडिया

मुख्य पृष्ठ

भारतीय अर्थव्यवस्था देश में मजबूत विकास और व्यापार के समग्र दृष्टिकोण में सुधार और निवेश के संकेत के साथ आशावादी रुप से बढ़ रही है । सरकार वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? के नये प्रयासों एवं पहलों की मदद से निर्माण क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है । निर्माण को बढ़ावा देने एवं संवर्धन के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितम्बर 2014 को 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की शुरुआत की जिससे भारत को महत्वपूर्ण निवेश एवं निर्माण, संरचना तथा अभिनव प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रुप में बदला जा सके।

'मेक इन इंडिया' मुख्यत: निर्माण क्षेत्र पर केंद्रित है लेकिन इसका उद्देश्य देश में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना भी है। इसका दृष्टिकोण निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, आधुनिक और कुशल बुनियादी संरचना, विदेशी निवेश वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? के लिए नये क्षेत्रों को खोलना और सरकार एवं उद्योग के बीच एक साझेदारी का निर्माण करना है।

भारत के वित्तीय बाजार और स्टॉक मार्किट मैं ट्रेडर्स का विश्वास |SEBI | | India का Bioscope

भगवा बिकिनी क्यों लगा रही आग, 'बेशरम रंग' पर वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? मच रहा ये कैसा बवाल?

LAC Clash: 'जवानों की पिटाई' वाले राहुल गांधी के वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? बयान पर सीएम योगी का जबदरस्त पलटवार, कहा- 'जवानों से माफी मांगें'

बिलकिस बानो की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज, दोषियों की रिहाई को वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? दी थी चुनौती

Ajay Devgn Video: काम और छुट्टी को लेकर कंफ्यूज हुए अजय देवगन, वीडियो शेयर कर लिखा- करें तो करें क्या?

Stock Market Holidays 2022 : मुहर्रम के कारण आज भारतीय वित्तीय बाजार बंद; एशियाई शेयरों में गिरावट

Updated: August 9, 2022 9:40 AM IST

Share Market News

Sensex Today : घरेलू परिसंपत्तियों के मिश्रित व्यापारिक परिणामों के एक दिन बाद मुहर्रम के कारण भारतीय वित्तीय बाजार आज बंद रहेंगे. वहीं, एशियाई शेयरों में मंगलवार की शुरुआत में गिरावट दर्ज की गई है. निवेशकों का ध्यान अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों और फेडरल रिजर्व नीति की राह पर केंद्रित हो गया है.

Also Read:

सोमवार को, भारतीय इक्विटी बेंचमार्क ने व्यापक वैश्विक शेयर बाजार की निराशा को धता बताते हुए, लगातार तीसरी साप्ताहिक वृद्धि दर्ज करने के बाद अपने प्रॉफिट को बढ़ाया.

30 शेयरों वाला बीएसई गेज 465.14 अंक या 0.80 प्रतिशत चढ़कर 58,853.07 पर बंद हुआ. दिन के दौरान यह 546.97 अंक या 0.93 फीसदी की तेजी के साथ 58,934.90 पर रहा. एनएसई निफ्टी 127.60 अंक या 0.73 प्रतिशत बढ़कर 17,525.10 पर बंद हुआ.

दोनों बेंचमार्क इंडेक्स ने शुक्रवार को अपने तीसरे सीधे साप्ताहिक लाभ को चिह्नित किया, प्रत्येक में 1.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जो नौ महीने के अंतराल के बाद भारतीय पूंजी बाजार में विदेशी निवेशकों की वापसी से प्रेरित थी.

लेकिन दूसरी ओर, सोमवार को रुपया तेजी से कमजोर हुआ क्योंकि ठोस अमेरिकी नौकरियों के आंकड़ों के बाद फेड के और अधिक आक्रामक होने की उम्मीदों के बाद डॉलर में तेजी आई.

वित्तीय दबाव में आ सकते हैं दुनिया के बाजार

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते एक आदेश पर दस्तखत किया था। उसके जरिए ‘शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में शामिल देशों’ के कर्जदाताओं को रुबल में भुगतान करने का अधिकार सरकारी संस्थानों और कंपनियों को दिया गया था।

कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने डिफॉल्ट किया, तो फिलहाल वैश्विक वित्तीय सिस्टम पर उसका सीमित प्रभाव ही होगा। विदेशी निवेशकों की तरफ से रूस को डॉलर में दिए गए वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? कुल कर्ज की रकम 20 बिलियन डॉलर ही है। इसके बावजूद विश्व वित्तीय बाजार इस घटनाक्रम के असर से बेदाग नहीं बच सकेंगे।

लंदन रिसर्च सेंटर से जुड़े यासुओ सुगेनो ने कहा- ‘इस जोखिम का बाजार में कैसे वितरण होगा, यह अस्पष्ट है। अगर वित्तीय संस्थानों को अप्रत्याशित नुकसान हुआ, तो उसका उससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।’ विशषेज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 1998 में जब रूस ने डिफॉल्ट किया था, तब दुनिया भर के वित्तीय बाजार दबाव में आ गए थे।

विस्तार

रूस के कर्ज डिफॉल्ट करने की आशंका लगातार गहरा रही है। उसका खराब असर कर्जदाता संस्थानों पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन युद्ध के बाद लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से रूस की अपनी विदेशी मुद्रा तक पहुंच कठिन हो गई है। इसे देखते हुए रूस सरकार के पास बहुत कम विकल्प बचते हैं।

रूस के कर्ज चुकाने की एक समय सीमा बुधवार को पूरी होगी। उसके बाद रूस के पास 30 दिन की अनुकंपा अवधि (ग्रेस पीरियड) रहेगी। लेकिन वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? इस अवधि में उसकी समस्या दूर होगी, इसकी संभावना नहीं है। तय कार्यक्रम के मुताबिक बुधवार को रूस को दस करोड़ डॉलर से अधिक की रकम डॉलर में चुकानी है। इसके अलावा 31 मार्च तक तक उसे 30 करोड़ डॉलर के मूलधन का भुगतान करना है। चार अप्रैल तक उसे दो अरब डॉलर चुकाने होंगे।

640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा

रूस के वित्त मंत्री एंतॉन सिलुआनोव ने सरकारी टीवी चैनल वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘हमारे पास कुल 640 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा है। उसमें से 300 बिलियन डॉलर उस अवस्था में हैं, जिनका अभी हम इस्तेमाल नहीं कर सकते।’ विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल रूस के पास नकदी रूप में उतने डॉलर मौजूद हैं, जिनसे वह विदेशी कर्ज चुका सकता है। फिर तेल और गैस का निर्यात जारी रहने के कारण उसके पास डॉलर आने के सारे स्रोत अभी बंद नहीं हुए हैं। इसके बावजूद सिलुआनोव ने चेतावनी दी है कि ‘अमित्र’ देशों के बॉन्ड धारकों को रूसी सेंट्रल बैंक तब तक रुबल में भुगतान करेगा, जब तक रूस के धन को वे देश देने को तैयार नहीं हो जाते हैँ।

जापान की एजेंसी मिजुहो रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज का अनुमान है कि रूस की विदेशी मुद्रा का 48.6 फीसदी हिस्सा सात धनी देशों में जमा है, जिसे उन्होंने जब्त कर लिया है। इन देशों में अमेरिका, जापान और फ्रांस शामिल हैं। इस एजेंसी से जुड़े अर्थशास्त्री युई तमुरा ने वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम से कहा- ‘अगर रूस सरकार और वहां की कंपनियां विदेशी मुद्रा की कमी के कारण वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? कर्ज नहीं चुकाती हैं, तो उससे रुबल में भरोसा और घटेगा। इसका परिणाम मुद्रास्फीति बढ़ने के रूप में सामने आएगा।’

वित्तीय दबाव में आ सकते हैं दुनिया के बाजार

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले हफ्ते एक आदेश पर दस्तखत किया था। उसके जरिए ‘शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में शामिल देशों’ के कर्जदाताओं को रुबल में भुगतान करने का अधिकार सरकारी संस्थानों और कंपनियों को दिया गया था।

कुछ बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने डिफॉल्ट किया, तो फिलहाल वैश्विक वित्तीय सिस्टम पर उसका सीमित प्रभाव ही होगा। विदेशी निवेशकों की तरफ से रूस को डॉलर में दिए गए कुल कर्ज की रकम 20 बिलियन डॉलर ही है। इसके बावजूद विश्व वित्तीय बाजार इस घटनाक्रम के असर से बेदाग नहीं बच सकेंगे।


लंदन रिसर्च सेंटर से जुड़े यासुओ सुगेनो ने कहा- ‘इस जोखिम का बाजार में कैसे वितरण होगा, यह वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? अस्पष्ट है। अगर वित्तीय संस्थानों को अप्रत्याशित नुकसान हुआ, तो उसका उससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।’ विशषेज्ञों ने ध्यान दिलाया है कि 1998 में जब रूस ने डिफॉल्ट किया था, तब दुनिया भर के वित्तीय बाजार दबाव में आ गए थे।

रेटिंग: 4.57
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 387