शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक(Factors Affecting Teaching):-
शिक्षा एक जटिल प्रक्रिया है जिसे अनगिनत तत्व प्रभावित करते हैं। यदि शिक्षक की शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली नहीं रहेगी तो छात्र कुछ सीख नहीं पाएंगे और अंततः अधिगम की अधिकता हेतु शिक्षण का प्रभावी होना आवश्यक है।
1.स्वीय कारक (Personal Factors):-
(1).पारिवारिक परिस्थितियां:-
इन सभी बातों का शिक्षक के मन पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जो बातें शिक्षक के मन को अनुकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को प्रभावी बनाती है और जो बातें उसके मन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, वे शिक्षक शिक्षण को अप्रभावी बनाती है।
(2).विद्यालयी परिस्थितियां:-
विद्यालयी परिस्थितियों के अंतर्गत भी शिक्षकों के अपने अन्य साथियों, शाला प्रधान,प्रशासक आदि के साथ संबंध यदि ठीक है तो वे शिक्षण को अनुकूल रूप से प्रभावित करते हैं, किंतु कारक विश्लेषण की अवधारणा यदि ठीक नहीं है तो वें उसके शिक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
2.बौद्धिक कारक (Intellectual Factors) :-
बुद्धि एक ऐसा अमूर्त तत्व है जो जितना किसी भी प्रकार के रचनात्मक कौशल के लिए महत्वपूर्ण है, उतना ही शिक्षण के लिए भी, क्योंकि शिक्षण सर्वाधिक प्रभावी तब ही हो सकता है,जब शिक्षक,स्वयं को कक्षा की परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सके और यह कार्य उस समय तक संभव नहीं जब तक शिक्षक कारक विश्लेषण की अवधारणा का बौद्धिक स्तर उच्च न हो।
अधिक नहीं तो प्रत्येक कक्षा में कुछ छात्र तो ऐसे मिल ही जाते हैं जो बौद्धिक दृष्टि से कहीं अधिक प्रखर होते हैं। इन छात्रों की जिज्ञासाओं को भी वही शिक्षक शांत कर पाता है जो स्वयं भी बौद्धिक दृष्टि से प्रखर हो।
शिक्षक बौद्धिक दृष्टि से जितना उच्च स्तर का होगा,उसका शिक्षण सामान्य उतना ही अधिक प्रभावी होगा। यदि शिक्षक प्रखर बुद्धि है तो –
(घ).वह इस स्थिति का कहीं सुलभ ढंग से निर्णय लें सकेगा कि कहां तर्क से काम लेना है और कहां अनुभव आधारित ज्ञान से।
(ड). यदि कोई बात ऐसी है जिसे वह स्वयं नहीं जानता तो उसे स्वयं और जल्दी सीखकर शिक्षार्थियों को बता देगा।
शिक्षक के बौद्धिक कारक को शिक्षण के नियोजन के रुप में व्यक्त किया जा सकता है। शिक्षक इसके अन्तर्गत तीन क्रियाओं को पूर्ण करता है –
(1). कार्य कारक विश्लेषण की अवधारणा का विश्लेषण (Analysis of the Task):-
शिक्षक को अपने कार्य की वास्तविक प्रकृति के बारे में समुचित ज्ञान होने के लिए कार्य के विश्लेषण की योग्यता होनी चाहिए। कार्य विश्लेषण की निम्नलिखित विशेषताएं शिक्षक को प्रभावित करती है –
2. शिक्षण उद्देश्यों की पहचान करना (Identification of Teaching Objectives):-
शिक्षक द्वारा शिक्षण के लिए उद्देश्यों की पहचान के बिना अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता है। अतः शिक्षण उद्देश्यों की पहचान के द्वारा शिक्षक का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। शिक्षण उद्देश्यों की आवश्यकता पुस्तक के निर्माण से प्रारंभ होती है और छात्रों के मूल्यांकन तक जारी रहती है।
3.अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना (Writing of Learning of Objectives in Behavioural):-
शिक्षक द्वारा अपने शिक्षण कार्य को अपेक्षाकृत वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक बनाने के लिए अधिगम उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप से लिखने की आवश्यकता होती है। क्यों शिक्षण को निम्नलिखित रुप में सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है –
मनोवैज्ञानिक कारक :-
मनोवैज्ञानिक कारकों के तहत अभिक्षमता, रुचि, अभिवृत्ति, मूल प्रवृत्तियां, भावना ग्रंथियां कारक आते हैं।
अभिक्षमता :-
शिक्षक की बहुत तकलीफ सकती है जो उसे किसी कार्य के प्रति उन्मुख करती है। इसी आधार पर कोई इंजीनियरिंग के कार्य की पसंद करता है तो कोई डॉक्टरी करना। कोई समाज सेवा करना पसंद करता है तो कोई अध्यापन। यहां पर एक बात दृष्टिव्य है कि यदि कोई शिक्षक कारक विश्लेषण की अवधारणा किसी भौतिक प्रलोभन के कारण किसी व्यवसाय या कार्य को पसंद करता है तो वह उसकी अभिक्षमता ना कह लाकर अभिवृत्ति कहलाती है। शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की और नही होगा, वह अच्छा शिक्षक बन सके-यह कम ही संभव है। इससे दूसरी और जिस शिक्षक का झुकाव मन से अध्यापन की ओर है, वह यदि अच्छा शिक्षक नहीं है तो प्रयास करने पर अच्छा शिक्षक बन सकता है।
रुचि :-
रुचि एक ऐसा तत्व है जो किसी भी बात को सीखने और किसी भी काम को करने की पूर्व आवश्यकता है। शिक्षक कितना ही बुद्धिमान और अभिक्षमता वाला क्यों ना हो, उसकी यदि पढ़ाने में रुचि नहीं है तो वह कक्षा में शारीरिक रूप से चला भले ही जाए पढ़ा नहीं पाएगा।
अभिवृत्ति :-
अभिवृत्ति रुचिका ही प्रगाढ रूप है। जिस कार्य में हमारी रुचि होती है, उस में रुचि लेते-लेते वह हमारी अभिवृत्ति बन जाती है। मानव मन की वह दशा जो अध्यापन की ओर उन्मुख या विमुख करें वही उसकी अभिवृत्ति है।
संवेग:-
हमने संभागों के भी दो रूप देखे थे – 1. जिज्ञासा, साहस आदि धनात्मक संवेग 2. घृणा, भय आदि ऋणात्मक संवेग। धनात्मक संवेगो की,कार्य करने वाले के मन में रचनात्मक होती है और ऋणात्मक संवेगों की प्रतिक्रिया ध्वंसात्मक होती है। संवेग चाहे वे धनात्मक हों या ऋणात्मक,शिक्षक के मन को भी इसी रुप में प्रभावित करते हैं।
भावना ग्रन्थियां :-
भावना ग्रंथियां भी शिक्षण को प्रतिकूल रूप से ही प्रभावित करती है। जब कोई अच्छा शिक्षक स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है तो उसमें अहं जागृत हो जाता है।अहं के पनपने पर उसका अध्ययन टूट जाता है। अध्ययन टूटने पर अध्यापन में धीरे-धीरे वह कुशलता कम होने लगती है जो उसने पहले अर्जित की थी। यही हाल हीनभावना की है। जब कोई शिक्षक स्वयं को अन्य शिक्षकों की तुलना में हीन समझने लगता है तो उसकी अध्यापन कुशलता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है। इस प्रकार दोनों ही प्रकार की भावना ग्रंथियां, शिक्षक को ऋणात्मक रूप से प्रभावित करती है।
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
परिचय (Introduction) –
स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत
उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं
बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।
सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ के मूल हैं।
विशिष्ट कारक – जो विशिष्ट कार्यो में सहायता करते हैँ।
G Factor मानसिक क्रियाओं का मूल हैं। अर्थात जिस व्यक्ति में G Factor उपस्थित है वही अपनी मानसिक क्रियाओं को कर सकता है।
और इसके अतिरिक्त विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट कारक उपस्थित होते हैं
सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है
- स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
- यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
- प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
- G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक अर्थत जिसके पास G कारक है वो मानसिक कार्य कर सकता है परन्तु इस G कारक के अतिरिक्त हर व्यक्ति के पास एक विशिष्ट कारक या विभिन्न प्रकार के विशिष्ट कारक हो सकते है। प्रत्येक मानसिक कार्य को करने में कुछ विशिष्टता( Specificity ) की आवश्यकता होती है। क्योकि, प्रत्येक मानसिक कार्य एक दुसरे से अलग अलग होती हैं। स्पीयरमेन ने इसे विशिष्ट कारक ( S – कारक ) की संज्ञा दी हैं।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक की विशेषताएं :
- S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
- विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।
3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।
इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
- S – कारक का स्थानान्तरण एक विषय से दूसरे विषय में नही हो सकता G – कारक द्वारा हम के विषय से दुसरे विषय में जा सकते है, परन्तु जरुरी नही है जिसे गाना गाना अता हो वह पेन्टीग भी अच्छा करता हो।
स्पीयरमेन ने G – कारक और S – कारक के बीच में संबंध बताने के लिए : सहसंबंध विधि द्वारा समर्थन लिया ( Evidence by correlation method )
इस में स्पीयरमेन ने correlation method से Evidence दिए :
स्पीयरमेन ने G व S कारकों के बीच सम्बन्ध बताया। इन्होने भिन्न भिन्न तरह की मानासिक क्षमता मापने वाले टेस्ट किए, जैसे शाब्दिक बोध पर परिक्षण, स्मृति परिक्षण, विवेक परिक्षण आदि को व्यकितयों के एक बड़े समूह पर क्रियान्वन किया, और इन परीक्षणों के बीच सहसंबध ज्ञात किया।
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
परिचय (Introduction) –
स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। कारक विश्लेषण की अवधारणा जो निम्नलिखित है :
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत
उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं
बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।
सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ के मूल हैं।
विशिष्ट कारक – जो विशिष्ट कार्यो में सहायता करते हैँ।
G Factor मानसिक क्रियाओं का मूल हैं। अर्थात जिस व्यक्ति में G Factor उपस्थित है वही अपनी मानसिक क्रियाओं को कर सकता है।
और इसके अतिरिक्त विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट कारक उपस्थित होते हैं
सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है
- स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
- यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
- प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
- G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक अर्थत जिसके पास G कारक है वो मानसिक कार्य कर सकता है परन्तु इस G कारक के अतिरिक्त हर व्यक्ति के पास एक विशिष्ट कारक या विभिन्न प्रकार के विशिष्ट कारक हो सकते है। प्रत्येक मानसिक कार्य को करने में कुछ विशिष्टता( Specificity ) की आवश्यकता होती है। क्योकि, प्रत्येक मानसिक कार्य एक दुसरे से अलग अलग होती हैं। स्पीयरमेन ने इसे विशिष्ट कारक ( S – कारक ) की संज्ञा दी हैं।
विशिष्ट कारक ( Specific Factor/ S – कारक )
विशिष्ट कारक की विशेषताएं :
- S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
- विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।
3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।
इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
- S – कारक का स्थानान्तरण एक विषय से दूसरे विषय में नही हो सकता G – कारक द्वारा हम के विषय से दुसरे विषय में जा सकते है, परन्तु जरुरी नही है जिसे गाना गाना अता हो वह पेन्टीग भी अच्छा करता कारक विश्लेषण की अवधारणा हो।
स्पीयरमेन ने G – कारक और S – कारक के बीच में संबंध बताने के लिए : सहसंबंध विधि द्वारा समर्थन लिया ( Evidence by correlation method )
इस में स्पीयरमेन ने correlation method से Evidence दिए :
स्पीयरमेन ने G व S कारकों के बीच सम्बन्ध बताया। इन्होने भिन्न भिन्न तरह की मानासिक क्षमता मापने वाले टेस्ट किए, जैसे शाब्दिक बोध पर परिक्षण, स्मृति परिक्षण, विवेक परिक्षण आदि को व्यकितयों के एक बड़े समूह पर क्रियान्वन किया, और इन परीक्षणों के बीच सहसंबध ज्ञात किया।
तकनीकी विश्लेषण और इसके लाभों के बारे में जानें
हिंदी
चाहे आप ट्रेडिंग के लिए नए हैं या कुछ समय से ट्रेडिंग कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से आपका परिचय ‘तकनीकी विश्लेषण’ शब्द से हुआ होगा। जब आप किसी भी परिसंपत्ति वर्ग या बाजार में निवेश कर रहे होते हैं, तो ट्रेड को समझने के लिए आपको आसान जानकारी की आवश्यकता होगी। आपको दो प्रकार के विश्लेषणों की आवश्यकता होगी: मौलिक और तकनीकी विश्लेषण।
जबकि मौलिक विश्लेषण में बैलेंस शीट को देखना, उद्योग और कंपनी की पुस्तकों का अध्ययन करने के रूप में सूक्ष्म कारकों की समझ शामिल है, उदाहरण के लिए, तकनीकी विश्लेषण पूरी तरह से चार्ट, पैटर्न, और सांख्यिकीय उपकरण है कि मदद एक ट्रेडर बाजार की प्रवृत्ति को समझने के बारे में है। यह एक ट्रेडर चार्ट, लाइनों, और पैटर्न की मदद से कारक विश्लेषण की अवधारणा एक निश्चित स्टॉक का आकलन करने में मदद करता है। यह चार्ट पर विशिष्ट परिसंपत्ति के इतिहास के आधार पर मूल्य के उतार-चढ़ाव को देखने में मदद करता है। भविष्यवाणियों के लिए, अतीत में परिसंपत्ति की कीमत और मात्रा का ध्यान रखा जाता है।
तकनीकी विश्लेषण का प्रयोग शेयर बाजार, डेरिवेटिव, करेंसी, और कमोडिटी ट्रेडिंग में भी किया जाता है। प्रश्न में संपत्ति एक स्टॉक, सोना, मुद्रा जोड़े, वायदा, और इतने पर हो सकती है। इसलिए, शेयर बाजारों में, जहां तकनीकी विश्लेषण आपको स्टॉक की कीमतों और बाजार की प्रवृत्ति के उतार-चढ़ाव की पहचान करने में मदद करता है, वहीं यह कमोडिटी के लिए भी यही कार्य करता है। उदाहरण के लिए, गोल्ड ट्रेडिंग को ले लेते हैं। सोने की कीमतें न केवल आपूर्ति और मांग के आधार पर बल्कि सरकारी नीतियों, केंद्रीय बैंकों की कार्रवाई, अन्य लोगों के बीच मुद्रा-संबंधी परिवर्तनों जैसे अन्य कारकों के आधार पर दैनिक रूप से उतार-चढ़ाव करती हैं।इसके कारण यह उचित हो जाता है कि गोल्ड ट्रेडिंग के किसी भी निर्णय को तकनीकी विश्लेषण के आधार लिया जाए।
सोने के तकनीकी विश्लेषण का उपयोग करके इस पीले कारक विश्लेषण की अवधारणा धातु की ट्रेडिंग का अर्थ है सोने की कीमत चार्ट को देखना और उन उपकरणों का उपयोग करना जो आपको और संभावित भावी उतार-चढ़ावों के बारे में बताएं।
चाहे आप जिस भी प्रतिभूति की ट्रेडिंग कर रहे हों, कुछ उपकरण हैं जो काम के होते हैं। उनमें शामिल हैं:
चार्ट पैटर्न:
चार्ट पैटर्न का प्रयोग व्यापक रूप से तकनीकी विश्लेषण में किया जाता है; ये कई आकृतियों का निर्माण करते हैं जो कि रिवर्सल और ब्रेकआउट की भविष्यवाणी करने में मदद करते हैं। मात्रा और कीमत दो कारक हैं जिनका विश्लेषण किया जाता है। आप लाइन, बार चार्ट, या कैंडलस्टिक आकृतियों का उपयोग कर सकते हैं। कैंडलस्टिक चार्ट मोमबत्तियों की एक श्रृंखला बनाते हैं जो करेंसी या प्रतिभूतियों की कीमत में उतार-चढ़ाव समझने में मदद करते हैं। प्रतिभूतियों का विश्लेषण करने के लिए कई प्रकार के कैंडलस्टिक चार्ट और पैटर्न हैं।
तकनीकी विश्लेषण में इस सूचक के कई संस्करण हैं। यह सुरक्षा की दिशा प्रवृत्ति की पहचान करने में मदद करता है।किसी ट्रेडर द्वारा चुनी गई विशिष्ट अवधि जैसे 10 दिन या 10 सप्ताह या कोई भी समय अवधि ली जाती है और इसे लगातार अपडेट किया जाता है ताकि ‘शोर( noise )’ के बाद उत्पन्न कोई प्रवृत्ति समाप्त की जा सके। एक समान समय सीमा के साथ एक विशिष्ट समय सीमा से कीमतों के औसत तुलना करके, आप एक प्रवृत्ति पर पहुंच सकते हैं।
इनकी गणना मूल्य और मात्रा डेटा के आधार पर की जाती है और परिसंपत्ति की गति और जारी रहने की संभावना का पता लगाने में आपकी सहायता करते हैं। गति सूचक का एक उदाहरण सापेक्ष शक्ति सूचकांक या आरएसआई होगा, जो हाल ही में मूल्य परिवर्तन की मात्रा को मापता है। यह उस परिवर्तन और गति की मात्रा को मापने में मदद करता है जिस पर मूल्य का उतार-चढ़ाव बदल गया है। आरएसआई सबसे लोकप्रिय गोल्ड तकनीकी विश्लेषण संकेतकों में से एक है और साथ ही एक बुलिश और बियरिश गोल्ड प्रवृत्ति को भी इंगित करती है।
तकनीकी विश्लेषण के क्या लाभ हैं?
प्रवृत्तियों का पता लगाना(Spotting trends):
यह बाजार की एक निश्चित प्रवृत्ति की भविष्यवाणी करने में किसी ट्रेडर या निवेशक की मदद करता है। चार्ट अपट्रेंड, डाउनट्रेंड और साइडवेज उतार-चढ़ावों को खोजने में ट्रेडरों की मदद करते हैं। तो यदि बाजार की प्रवृत्ति बढ़ रही है(अपट्रेंड), तो आप खरीदने के अवसर का उपयोग कर सकते हैं। यदि बाजार की प्रवृत्ति नीचे है(डाउनट्रेंड), तो आप बेचने के अवसर का उपयोग कर सकते हैं।
विश्लेषण का यह रूप आपको गति की अवधारणा तथा यह समझने में मदद करता है कि प्रवृत्ति सकारात्मक है या नहीं। जब कोई निश्चित स्टॉक प्रतिरोध स्तर से ऊपर या सपोर्ट स्तर के नीचे पर्याप्त मात्रा और दृढ़ता से ब्रेक होता है, तो यह गति को इंगित करता है। सपोर्ट तब होता है जब डाउनट्रेंड के रुकने की संभावना होती है क्योंकि मांग केंद्रित हो गई है। प्रतिरोध तब होता है जब बेचने में उच्च रुचि के कारण अपट्रेंड को रोकने की संभावना होती है। इसके अलावा जब अपट्रेंड टॉप और बॉटम का निर्माण कर रहे होते हैं वह उच्च होता है और टॉप और बॉटम का निर्माण करने वाले डॉउनट्रेंड निम्न होते हैं, यह गति की पुष्टि करता है। एक ट्रेडर के रूप में गति आपके लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपको इसके पक्ष में रहने की अनुमति देती है।
समय निर्धारित करना:
आपकी प्रवेश करने या बाहर निकलने का समय किसी भी प्रकार के ट्रेडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विश्लेषण का यह रूप आपको ट्रेडिंग में प्रवेश करने या बाहर निकलने के लिए उचित समय की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।उदाहरण के लिए,यह कैंडलस्टिक्स या गतिमान औसत से सक्षम है।
बुनियादी सिद्धांत जिन पर तकनीकी विश्लेषण टिका हुआ है
तकनीकी विश्लेषण आपको चार्ट और मूल्य पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है, जो किसी भी प्रकार के निवेश के केंद्र में होता है। इसके मूल में, विश्लेषण इस विश्वास पर निर्भर करता है कि मूल्य उन सभी जानकारियों को प्रतिबिंबित करता है जो एक निश्चित बाजार या संपत्ति को प्रभावित करती है। यह वही आधार है जो विश्लेषकों को यह समझने की ओर ले जाता है कि निवेशक जानकारी को कैसे समझते हैं या व्यवहार करते हैं।
विश्लेषण जिन स्तभों पर टिका है उनमें से एक यह कि इतिहास खुद को दोहराता है। विश्लेषकों का मानना है कि मूल्य आंदोलन चक्रीय हैं और पिछले मूल्य आंदोलनों को देखते हुए भविष्य के फैसले को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। यही वह सिद्धांत है जो कि उन पैटर्न का चार्ट बनाने में नेतृत्व करता जो ट्रैक करते हैं कि एक समय सीमा पर बाजार ने कैसे व्यवहार किया है या कीमतें कैसे बदल रही हैं।
एक ट्रेडर के रूप में, आपको निर्णय लेने के लिए मौलिक और तकनीकी विश्लेषण के संयोजन की आवश्यकता होगी। जबकि मौलिक विश्लेषण अर्थव्यवस्था, उद्योग, अन्य बातों के बीच आय रिपोर्ट का अध्ययन करके स्टॉक या संपत्ति के आंतरिक मूल्य का आकलन करता है, तकनीकी विश्लेषण प्रवृत्तियों और पैटर्न की पहचान करने से संबंधित है जो आपको यह समझने में मदद करता है कि भविष्य में स्टॉक कैसे प्रदर्शन कर सकता है। तकनीकी विश्लेषकों कीमत कारक के सब कुछ के रूप में एक प्रतिभूति के आंतरिक मूल्य को मापने के बारे में खुद की चिंता नहीं करते।
भले ही आप गोल्ड, स्टॉक या फॉरेक्स ट्रेडिंग में रुचि रखते हों, आपको मौलिक और तकनीकी विश्लेषण के बीच अंतर जानने की आवश्यकता होगी। गोल्ड के लिए, आपको सोने के तकनीकी विश्लेषण उपकरण और रणनीतियों की समझ प्राप्त करने की आवश्यकता होगी। दूसरों के लिए भी, आपको शामिल उपकरणों और संकेतकों की समझ प्राप्त करने की आवश्यकता होगी। आप एक डीमैट और ट्रेडिंग खाता खोलकर शुरूआत कर सकते हैं और अनुसंधान रिपोर्ट और वास्तविक समय डेटा तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं जो आपको सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।
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