किसी अपराध का झूठा आरोप लगाना, IPC की किस धारा में अपराध है !
बी आर अहिरवार :- कभो कभी जैसा होता है जो अपराध हम नहीं करते हैं उस अपराध के लिए सजा काट लेते हैं क्योंकि कुछ व्यक्ति हमे नुकसान पहुचाने के लिए झूठा आरोप लगा देते हैं और मन-गाडित अर्थात झूठे साक्ष्य बना लेते हैं। ऐसे में जब हम निर्दोष साबित हो जाते हैं तब ऐसे झूठे आरोप लगाने वाले व्यक्ति पर भी झूठी संकेत और उनसे कैसे बचें मामला दर्ज कर सकते हैं। वो भी उसी न्यायालय में जहाँ आपका झूठा मुकदमा दर्ज था जानिए।
कोई व्यक्ति किसी निर्दोष व्यक्ति पर उसको नुकसान या क्षति पहुचाने के उद्देश्य से दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करेगा या झूठा आपराधिक आरोप लगाएगा इस धारा के अंतर्गत अपराध है।
नोट:- यह अपराध तब घटित होता है जब झूठे आरोप पुलिस या मजिस्ट्रेट के पास लगाया गया है तथा वही से दाण्डिक कार्यवाही की जा रही हो। केवल संदेह करना झूठा आरोप नहीं माना जायेगा एवं झूठी सूचना देना मात्र भी इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है।
इस धारा के अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय होते है।इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट ओर सेशन न्यायालय दूआरा की जाती हैं।
1. क्षति(नुकसान) करने के आशय से झूठा आरोप लगाने पर- दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
2. आरोप सात वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय है तब- सात वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डनीय होगा।
3. आरोप मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय हैं तब- सुनवाई सेशन न्यायालय दूआरा एवं सात वर्ष की कारावास एव जुर्माना से दण्डनीय होगा।
4.छत्तीसगढ़ राज्य संशोधन अधिनियम 2013 में आरोपित अपराध धारा- 354,354क,354ख,354ग,354घ,354ङ, 376ख,376ग,376च,509,509क, 509ख से दण्डनीय अपराध की सजा- कारावास तीन वर्ष से कम नहीं लेकिन 5 वर्ष तक हो सकती हैं जुर्माने के साथ।
उधारानुसार:- किसी व्यक्ति ने पुलिस को किसी अपराध की झूठी सूचना देते हुए यह आशंका व्यक्त की कोई अन्य व्यक्ति भी इस अपराध में शामिल होने का शक है, अगर यह सूचना झूठी पाई जाने के आधार पर उस सूचना देने वाले व्यक्ति पर धारा 211 के अंतर्गत कार्यवाही नही की जा सकती है।लेकिन जहां उस व्यक्ति की रिपोर्ट से यह उद्देश्य स्पष्ट झलकता है तब उस निर्दोष व्यक्ति को हिरासत में लिये जाने एवं उसके विरुद्ध दाण्डिक कार्यवाही की जाने की अपेक्षा करता है, तब वह सूचना झूठी साबित होने पर उसके विरुद्ध धारा 211 के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकेगी।
Everyday Science : हम झूठ बोलकर किसका नुकसान करते हैं?
गौतम बुद्ध (Gautuam Buddh) ने कहा था कि 'आप जैसा सोचते हैं, वैसे ही हो जाते हैं', साइंस ने इस बात को साबित किया है कि ब . अधिक पढ़ें
- News18India
- Last Updated : October 25, 2020, 15:00 IST
हिटलर (Adolf Hitler) के प्रोपैगैंडा का सिद्धांत था 'झूठ पुख़्ता ढंग से बोलो और बार बार बोलो, तो लोग उसे सच मानने लगेंगे'. लेकिन, नाज़ियों (Nazis) को यह विज्ञान नहीं पता था कि झूठ बोलना, झूठ बोलने वाले का कितना नुकसान करता है. कुछ ही समय पहले वैज्ञानिकों ने स्टडीज़ (Scientific Study) के बाद बताया कि झूठ बोलने से व्यक्ति का कम समय के लिए कोई फायदा भले हो, लंबे समय के लिए बड़ा नुकसान होता है. वहीं, सच बोलने या ईमानदारी बरतने से भले ही लगे कि नुकसान ज़्यादा होगा, लेकिन बड़ा फ़ायदा होता है.
जी हां, झूठ और सच बोलने के पीछे पूरा विज्ञान है. समाज, मीडिया और झूठी संकेत और उनसे कैसे बचें सियासत से हम बहुत हद तक रोज़मर्रा जीवन में जुड़े हैं इसलिए झूठ सुनने या झूठ के बारे में सुनने के आदी हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि लोग झूठ आखिर क्यों बोलते हैं, झूठ या सच बोलने के पीछे विज्ञान क्या कहता है और झूठ बोलने से बचा कैसे जा सकता है. एक के बाद एक झूठी संकेत और उनसे कैसे बचें पहलू को समझते हैं.
हम झूठ बोलते ही क्यों हैं?
कई वजहें हो सकती हैं. किसी सज़ा या अपमान से बचने, ज़्यादा फायदा पाने, ताकत, पैसा, प्रमोशन या इंप्रेशन जमाने जैसी कई वजहों से लोग झूठ बोलते हैं. अर्थ समझा जाए तो किसी तरह के लाभ पाने या किसी तरह के नुकसान से बचने के लिए झूठ बोला जाता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में रिसर्चरों ने देखा कि पहला बड़ा झूठ बोलते वक्त ब्रेन के एक हिस्से ऐमिग्डाल में नकारात्मक सिग्नल यानी परेशानी के संकेत दिखते हैं.
यहां यह भी समझना ज़रूरी है कि कोई जन्म से झूठ बोलना नहीं सीखता यानी यह प्राकृतिक टेंडेंसी नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि साथ के वयस्कों, समाज और मीडिया से बच्चे झूठ बोलना सीखते हैं. और बचपन ही सही उम्र है, जब झूठ बोलने की टेंडेंसी पर रोक लगाना ज़रूरी है.
वैज्ञानिक मानते हैं कि झूठ बोलने की आदत से छुटकारा संभव है.
कैसे खतरनाक है झूठ बोलना?
रिसर्चरों ने देखा कि ऐमिग्डाल में जो निगेटिव रिएक्शन पहले झूठ के वक्त दिखते हैं, वो तब नहीं दिखते जब आप झूठ बोलने के आदी हो जाते हैं. तब मस्तिष्क में तनाव नहीं होता. इसका मतलब वैज्ञानिकों ने साफ बताया कि आप जितना झूठ बोलते हैं, आप उतने आदी होते जाते हैं. यानी झूठ बोलना केमिकल और साइकोलॉजिकल तौर पर आपके अंदर ऐसी टेंडेंसी पैदा करता है, जिससे आपका कैरेक्टर खराब हो जाता है.
याद रखिए कि ऐमिग्डाल हमारे ब्रेन का वो खास हिस्सा है जो डर, चिंता और इमोशनल रिस्पॉंस पैदा करता है, जैसे झूठ बोलने के समय पछतावे, ग्लानि या डर जैसी फीलिंग्स. बार बार झूठ बोलने से इसका रिस्पॉंस देना एक तरह से खत्म होता जाता है.
सच बोलने का विज्ञान क्या है?
हमें अक्सर यही डर होता है कि ज़्यादा ईमानदारी या सच्चाई से काम लेने पर लोग ठीक नहीं समझेंगे या फिर हमारा नुकसान हो जाएगा. लेकिन 'ये बातें झूठी बातें हैं, ये लोगों ने फैलाई हैं'. जी हां, शिकागो यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी बता चुकी है कि इस तरह के डर और भ्रम सही नहीं हैं. दूसरी तरफ, ईमानदारी से काम लेने पर आप जितना सोचते हैं, उससे कहीं ज़्यादा खुशनुमा और बेहतर फील करते हैं.
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रिलेशनशिप की बात हो या सामाजिक संबंधों की या प्रोफेशनल जगहों की, स्टडी में पाया गया कि हर जगह आप सच्चाई और ईमानदारी से काम लेकर खुश रह सकते हैं. इस साइकोलॉजिकल स्टडी का सार यही निकला कि 'ऑनेस्टी इज़ द बेस्ट पॉलिसी' कहावत बेशक ठीक है.
क्या झूठ से छुटकारा संभव है?
बेशक. झूठ बोलने की आदत से पीछा छुड़ाने के लिए आप अपने परिवार या दोस्तों का सहारा लेकर सही फीडबैक ले सकते हैं, जो आपको ईमानदार होने के लिए प्रेरित करेगा. दूसरे आप सच बोलने और ईमानदारी से खुद फीडबैक देने की प्रैक्टिस करें और तीसरे किसी परिस्थति में अपने मन या ज़मीर की बात सुनें और आदतन झूठ बोलने का मन करे भी तो, काबू करें और सच बोलें, भले ही शुरूआत में आपको इसके कुछ नुकसान हों.
इस पूरे वैज्ञानिक अध्ययन का सार यही है कि झूठ बोलने से और ज़्यादा झूठ बोलना आसान होता जाता है. तो दूसरी तरफ, ईमानदारी के साथ भी यही सिद्धांत है. बात प्रैक्टिस की है, कैरेक्टर की है. आपको ही तय करना है कि आप किस अभिव्यक्ति का जोखिम उठाना चाहते हैं.
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रिश्ते में भावनाओं के नाम पर इमोशनल अत्याचार से खुद को कैसे बचाएं!
Photo:© ndtv.com (Main Image)
सारा खेल भावनाओं का ही है। इसी पर सबकुछ टिका है। किसी भी रिलेशनशिप की कल्पना इमोशन के बिना नहीं कर सकते। क्योंकि बिना इमोशन के प्यार या किसी के प्रति लगाव नहीं होता। मगर कई बार भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ हो जाता है।
इसलिए इमोशनल अटैचमेंट (Emotional Attachment) और इमोशनल अत्याचार (Emotional Blackmailing) के बीच अंतर समझना जरूरी है। क्योंकि इन दोनों बातों को समझने के बाद ही तय कर पाएंगे कि प्यार सच्चा है या झूठा (Real Or Fake Love)।
कई बार हम इमोशनल अटैचमेंट के नाम पर ब्लैकमेलिंग का शिकार होते रहते हैं। यही रिश्ता लंबे समय तक चल नहीं पाता, जब हमें उसकी सच्चाई पता चलती है तो हमारे पर सिवाए अफसोस के कुछ नहीं होता।
Table of Contents
इमोशनल वेलनेस कोच (Emotional Wellness Coach)
इमोशनल वेलनेस कोच (Emotional Wellness Coach) सागरिका मिश्रा कहती हैं, 'इमोशनल अटैचमेंट और ब्लैकमेलिंग को समझना इतना आसान नहीं होता। एक पॉजिटिव अटैचमेंट होता है जिससे रिलेशनशिप के मायने समझ आते हैं। हमें अपने साथ-साथ पार्टनर की जरूरत का भी ख्याल रखना होता है।'
इमोशनल अटैचमेंट के संकेत (Sign Of Emotional Attachment)
© TOI
सागरिका के अनुसार, जिस रिश्ते में प्यार-सम्मान दिख रहा है उसमें एक पॉजिटिव अटैचमेंट (Positive Attachment) है। अगर वह पूरी इज्जत के साथ कद्र करता है तो ऐसा इमोशनल अटैचमेंट होना सही है।
सम्मान करना (Respect Your Partner)
भावनाओं की कद्र करने का मतलब है एक-दूसरे का सम्मान करना। क्योंकि केवल रो देने यानी किसी के लिए आंसू बहाने से सबकुछ सही नहीं मान सकते। जबतक कोई रिस्पेक्ट न करता हो।
ख्याल रखना (Care Your Partner)
इमोशन का ख्याल रखने का मतलब है कि हम क्या बोल रहे हैं, पार्टनर को किस तरह से जवाब दे रहे हैं और कैसा बर्ताव कर रहे हैं। अगर सब सही है तो ऐसे अटैचमेंच को सही मान सकते हैं।
दिल न दुखाना (Don't Hurt)
भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर ही सबसे ज्यादा तकलीफ पहुंचती है। इसलिए दिल न दुखाने वाले व्यक्ति के इमोशनल अटैचमेंट को सही मान सकते हैं।
निष्कर्ष : इसलिए कई लोग यह मानते हैं कि यदि कोई रिश्ते का सम्मान और ख्याल करता है यानी दिल नहीं दुखाता वो सही है। उसके साथ रिलेशनशिप लंबा (Long Term Relationship) झूठी संकेत और उनसे कैसे बचें चल सकता है। ऐसे लोगों को इमोशनल अटैचमेंट सही माना जाता है। जिसमें स्वार्थ, छल-कपट की झलक नहीं दिखती।
इमोशनल अत्याचार (Emotional Blackmailing)
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इमोशनल ब्लैकमेलिंग को समझने के लिए मैंने कुछ उदाहरण बताए। जैसे- हर वक्त रोना-धोना, अपनी आर्थिक तंगी बयां करना, मैं जी नहीं सकता / तुम बिन मर जाऊंगा, कहीं तुम छोड़ोगे नहीं न, मैं तुम्हारे लायक नहीं इत्यादि।
सागरिका इस पर कहती हैं कि रिलेशनशिप में इस तरह के संकेत इमोशनल ब्लैकमेलिंग के होते हैं। खासकर, इनसिक्योर महसूस करने वाले लोग इमोशनल अत्याचार करते हैं। इसलिए हमें ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए।
नोट : अगर कोई इस तरह की बातें करता है तो उसको समझने की कोशिश करें। लेकिन अगर कोई इन इमोशन के जरिए फायदा उठाना चाह रहा है तो उसकी भावनाओं को भांप कर दूरी बना लेना सही होता है।
भावनाओं के साथ खेलना (Play With Emotion)
केवल अपने इमोशन को ही सही ठहराना, पार्टनर की बात नहीं सुनना, उसको बुरा लगे या सही अच्छा इसकी फिक्र न करना। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे क्या समझें। इस पर सागरिका का कहना है कि ये तो भावनाओं के साथ खेलना हुआ।
झूठे रिश्ते की पहचान (Fake Relationship Signs)
कई बार रिश्ते में लोग हर दिन अपनी गरीबी या अन्य मजबूरियों को गिनाकर अप्रत्यक्ष रूप से पैसे लेने की कोशिश करते हैं। कई बार फिजिकल रिलेशनशिप के लिए ही इमोशनल ब्लैकमेलिंग का सहारा लेते हैं।
इससे रिश्ता अनहेल्दी (Unhealthy Relationship) होता है। अगर आपको इमोशनल ब्लैकमेलिंग की पहचान होगी तो धोखेबाजों से खुद को बचा सकेंगे। जबकि वहीं, कई कपल्स भावनाओं में बहकर तबाह हो जाते हैं।
रिश्ते की इनसिक्योरिटी से कैसे उबरें (How To Overcome Insecurity In A Relationship)
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किसी रिश्ते की इनसिक्योरिटी से उबरने के लिए खुद को सशक्त करने की जरूरत है। हर वक्त खुद को कमजोर या अपनी कमियों को दिखाने से कभी भी इस तरह की कमियों को दूर नहीं कर सकते हैं।
- दिल की बात बताएं।
- पार्टनर को समझें।
- रिलेशनशिप में फिल्मी न बनें।
- रिश्ते में इमोशन इंवेस्ट करें।
- अपनी कमियों को दूर करें। की मदद लें।
हमेशा इस बात को याद रखें। बेहिसाब प्यार करें लेकिन किसी के प्यार में इतना भी अंधा न बनें कि आपको इमोशनल अटैचमेंट और इमोशनल अत्याचार का पता ही नहीं चले।
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