Amrullah Saleh: खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित करने वाले पूर्व जासूस अमरुल्ला सालेह कौन हैं?
अक्टूबर 1972 में पंजशीर में पैदा हुए सालेह बहुत कम उम्र में अनाथ हो गए
अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने दावा किया है कि रविवार को काबुल में तालिबान के प्रवेश करने के साथ राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर चले जाने और उनका कोई अता-पता नहीं चलने के बाद अब वे देश के वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं। उन्होंने कहा कि वह काबुल में ही हैं। आपको बता दें कि राजधानी काबुल क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने से कुछ ही समय पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया था।
सालेह ने कहा कि अफगानिस्तान का संविधान उन्हें इसकी घोषणा करने की शक्ति देता है। उन्होंने लिखा है कि वह सभी नेताओं से संपर्क साध रहे हैं, ताकि उनका समर्थन हासिल किया जा सके और सहमति बनाई जा सके। फिलहाल पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और शांति परिषद प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला सहित कई अफगान नेता काबुल पर तालिबान का कब्जा होने के बाद से वार्ता कर रहे हैं।
मंगलवार को अपने सिलसिलेवार ट्वीट में सालेह ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से तर्क करना बेकार है, जिन्होंने अमेरिकी सैनिकों की वापसी का फैसला लिया। उन्होंने अफगान नागरिकों से यह दिखाने का आह्वान किया कि अफगानिस्तान वियतनाम नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह किसी भी परिस्थिति में तालिबान के सामने कभी नहीं झुकेंगे।
कौन हैं अमरुल्ला सालेह?
48 वर्षीय पूर्व जासूस सालेह ने अभी भी देश नहीं छोड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में वह काबुल के उत्तर-पूर्व में पंजशीर घाटी में हैं, जो अभी भी तालिबान के नियंत्रण से मुक्त है। सालेह तालिबान के विरोध में लगातार आयोजन करते रहे हैं। अहमद मसूद और रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी ने भी उनका साथ देने का वादा किया है। अहमद मारे गए कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जिनके जीवनकाल में तालिबान पंजशीर घाटी को 1996 और 2001 के बीच अपने अंतिम शासन में नहीं जीत सका।
अक्टूबर 1972 में पंजशीर में पैदा हुए सालेह बहुत कम उम्र में अनाथ हो गए। वह अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति का पदभार संभालने से पहले देश की खुफिया एजेंसी एनडीएस के चीफ थे। एएफपी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ताजिक जातीय क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग समूह से आने वाले अमरुल्ला 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री थे।
अफगानिस्तान में 90 के दशक में जब सोवियत सेनाएं दाखिल हुई थीं, उस समय सालेह ने पाकिस्तान में हथियारों का ट्रेनिंग हासिल किया और पंजशीर के शेर कहे जाने वाले कमांडर अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में जंग लड़ा था। इसके बाद जब तालिबान ने अफगानिस्तान में पैर पसारना शुरू किया तब सालेह मसूद के नेतृत्व में तालिबान के खिलाफ जंग में कूद गए। इसके बाद सालेह ने भारत के साथ दोस्ती बढ़ाई। उन्होंने अहमद शाह मसूद की भारतीय अधिकारियों से मुलाकात कराई और सहायता हासिल की।
अफगानिस्तान खुफिया एजेंसी का किया नेतृत्व
इसके बाद उन्होंने 2004 में नवगठित अफगानिस्तान खुफिया एजेंसी राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) का नेतृत्व किया। खुफिया सालेह एनडीएस प्रमुख के रूप में एकत्र हुए, बशर्ते उन्होंने जो आरोप लगाया वह सबूत था कि पाकिस्तानी सेना तालिबान का समर्थन करती रही। 2010 में हालांकि, काबुल शांति सम्मेलन पर अपमानजनक हमले के बाद सालेह को अफगानिस्तान के जासूस प्रमुख के रूप में बर्खास्त कर दिया गया था।
2018 में वह राष्ट्रपति अशरफ गनी के शासन में आंतरिक मंत्रालय के प्रभारी के रूप में लौटे। 19 जनवरी को सालेह ने अशरफ गनी की चुनाव टीम में शामिल होने के लिए आंतरिक मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। गनी के फिर से चुनाव के बाद सालेह को जनवरी 2019 में अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया था। सालेह ने अपने जासूसों का ऐसा नेटवर्क तैयार किया है जो उन्हें अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान तक में तालिबान और ISI की हरकतों पर नजर रखने में मदद करता है।
कहा जाता है कि सालेह के भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ से अच्छे रिश्ते हैं। उनकी इस दोस्ती की वजह से पाकिस्तानी उनसे नफरत करते हैं। जिहादियों के खिलाफ उनके सख्त कदमों के कारण तालिबान के वह सबसे बड़े दुश्मन हैं। तालिबानी नेता सालेह को पकड़ना चाहते थे लेकिन वह चुपके से पंजशीर घाटी चले गए जो विद्रोहियों का अभेद्य किला है।
कई बार हो चुके हैं हमले
सालेह पर अब तक कई बार भीषण जानलेवा हमले हो चुके हैं। 9 सितंबर, 2020 को काबुल में हुए बम हमले में सालेह घायल हो गए थे, जिसमें 10 लोग मारे गए थे। फिर 28 जुलाई, 2019 को तीन आतंकवादी काबुल में सालेह के कार्यालय में घुसे और एक आत्मघाती हमलावर ने खुद को उड़ा लिया जिसमें 20 लोग मारे गए। जबकि सालेह बच गए। इस हमले में उन्होंने कई सहयोगियों और दो भतीजों को खो दिया।
तालिबानियों ने की बहन की हत्या
अफगान खुफिया विभाग का नेतृत्व करने से पहले सालेह दिवंगत गुरिल्ला सेनानी अहमद शाह मसूद के उत्तरी गठबंधन का सदस्य थे, जिसने 1996 में सत्ता में आने पर तालिबान का मुकाबला किया था। एएफपी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सालेह की बहन को 1996 में तालिबान लड़ाकों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया था। सालेह ने पिछले साल टाइम पत्रिका के संपादकीय में लिखा था कि 1996 में जो हुआ उसके कारण तालिबान के बारे में मेरा दृष्टिकोण हमेशा के लिए बदल क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग गया।
साल 1979 और 1989 के बीच सोवियत कब्जे के खिलाफ प्रतिरोध के दौरान अहमद शाह मसूद एक शक्तिशाली गुरिल्ला कमांडर थे। 1990 के दशक में उन्होंने तालिबान के अधिग्रहण के बाद सरकार की सेना का नेतृत्व किया। मसूद 2001 में उनकी हत्या तक उनके शासन के खिलाफ प्रमुख विपक्षी कमांडर थे। हथियारबंद लड़ाकों के साथ उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह पंजशीर को तालिबान के खिलाफ लड़ाई में तैयार करने में जुटे हैं।
NaBFID: इंफ्रा पर अरबों खर्च है कबूल, लेकिन गलतियां न जाइए भूल
आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं
जब सरकार ने एकदम नया डेवलपमेंट फायनांस इंस्टीट्यूशन (DFI) का ऐलान किया गया, जिसे नेशनल बैंक फॉर फायनांसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट (NaBFID) कहा गया तो मेरे मुंह से आह निकली, IDBI, IFCI, ICICI, IDFC, और IIFCL की असफल कड़ी में एक और नाम जोड़ा गया.
अब मुझे गलत नहीं समझिए. इसका उद्देश्य बहुत अच्छा है. अल्ट्रा लॉन्ग टर्म फायनांसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए एक सक्षम माहौल बनाने के लिए भारत को हर जरूरी कदम उठाने चाहिए. देश ने सड़कों, डीप-सी पोर्ट, पावर प्रोजेक्ट्स और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) में 7400 बड़ी परियोजनाएं की शृंखला जिसमें बहुत कुछ शामिल है,
पर अगले पांच सालों में 111 लाख करोड़ (1.5 ट्रिलियन डॉलर) निवेश करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इससे हमारी क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग अर्थव्यवस्था को मिडिल इनकम ट्रैप से बाहर निकलने के लिए जिस रफ्तार की जरूरत है उसमें मदद मिल सकती है. मेरी लड़ाई महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि DFI संस्थाओं की असफल विरासत और उसके डिजाइन से है.
मेरी लड़ाई महत्वाकांक्षा से नहीं बल्कि DFI संस्थाओं की असफल विरासत और उसके डिजाइन से है.
DFI संस्थाओं को रियायत ने ऐतिहासिक तौर पर अक्षमता और भ्रष्टाचार को पैदा किया है
आपको 1960 की बात बताते हैं जब हमारी अर्थव्यवस्था सरकार के “नियंत्रण में” थी. देश की बचत का इस्तेमाल करने के लिए कई DFI को काफी ज्यादा रियायतें दी गईं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने लॉन्ग टर्म फंड्स के लिए अलग रास्ता खोलने के अलावा उनके बॉन्ड्स को कानूनी रूप दिया.
ऐसे दौर में जब भारतीय कंपनियों क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग की पहुंच विदेशी पूंजी तक नहीं थी तब DFI इंटरनेशनल एजेंसी से सॉफ्ट लोन ले सकती थीं. जैसा कि अनुमान था, 'दिल्ली से फोन कॉल', जान-पहचान वालों को फाइनेंस, गलतियं, बेतहाशा खर्च, इन जैसे हजारों कारणों से 1990 का दशक आते-आते इनकी बैलेंस शीट इनके नियंत्रण से बाहर हो गई. इसके साथ ही DFI को बंद कर दिया गया या उन्हें कमर्शियल बैंक में बदल दिया गया
आज NaBFID के लिए जो रियायतें दी जा रही हैं वो और भी जबर्दस्त हैं (या डरावनी हैं, इस बात पर निर्भर करती हैं कि मुद्दे पर आप किस तरफ हैं:
क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग
एन. शंकरैया तमिल में कम्युनिस्ट घोषणापत्र पढ़ते हुए, 20 फरवरी 2020, चेन्नई, भारत
लाल किताब दिवस (Red Books Day), 21 फरवरी 2020, से पहले की रात को, भारत के तमिलनाडु में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बत्तीस संस्थापकों में से एक, एन. शंकरैया, ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र का एम. शिवलिंगम द्वारा किया गया नया तमिल अनुवाद क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग पढ़ा। 98 साल के कॉमरेड शंकरैया ने कहा कि उन्होंने पहली बार 18 साल की उम्र में इस घोषणापत्र को पढ़ा था। वर्षों से वो इस किताब को बार-बार पढ़ते रहे हैं, क्योंकि हर बार इसका पाठ कुछ नया सिखाता है। और कुछ ऐसा -जो दुख की बात है- कि चिरआयु लगता है।
घोषणापत्र के अंत में, मार्क्स और एंगेल्स ने दस अनंतिम योजनाओं की एक सूची दी है, जो किसी भी उदार व्यक्ति को समझ में आनी चाहिए। यह सूची 1848 में तैयार की गई थी, लेकिन आज भी ये न केवल समकालीन है, बल्कि आवश्यक भी है। इस सूची में पहली माँग, भू-संपत्ति के उन्मूलन की है – एक ऐसी माँग जो आज ब्राजील में कृषि सुधार पर बहस के माहौल में लगातार उठायी जा रही है, और जो दक्षिण अफ्रीका में बड़े स्तर के भू-निष्कासन की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारने के लिए मुआवजे के बिना भूमि-नियमन पर 2018 से चल रही बहसों में परस्पर दबाव डाल रही है (इस संदर्भ में मार्च 2020 में विधायिका के प्रस्तावों की उम्मीद की जा रही है)। इस सूची में विरासत के अधिकार के उन्मूलन और आरोही कराधान की माँगें हैं, जो कि धन के भद्दे विनियोग को रोकने और अधिशेष धन की पुनरावृत्ति करने के समाजवादी उपाय हैं। धन और कॉर्पोरेट कर बढ़ाने की मांग संयुक्त राज्य अमेरिका में उठ रही है, जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बर्नी सैंडर्स ने कहा है कि धन की असमानता लोकतंत्र को दूषित करती है। नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जयति घोष ने लिखा है कि वैश्विक वित्तीय गोपनीयता को समाप्त करने की ज़रूरत है ताकि अति-समृद्ध लोगों और बहुराष्ट्रीय निगमों के छुपे हुए धन का बेहतर हिसाब लगाया जा सके।
विनिर्माण और कृषि क्षेत्र की अति-महत्वपूर्ण माँगों की सम्मुचित सूची के बाद, मार्क्स और एंगेल्स की अब आम धारणा बन चुकी आख़िरी माँग थी, सभी बच्चों के लिए सार्वजनिक विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के आधे देशों में 50% से अधिक युवा उच्च माध्यमिक विद्यालय पूरा नहीं कर पाए हैं, जबकि 50% गरीब बच्चों ने प्राथमिक विद्यालय पूरा नहीं किया है। यूनेस्को ने सुझाव दिया है कि शिक्षा पर ख़र्च के संदर्भ में 6% सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक अच्छा मानक है। लेकिन दुनिया के केवल एक चौथाई देश ही GDP का 6% या उससे ज़्यादा शिक्षा क्षेत्र में ख़र्च करते हैं और अधिकतर जीडीपी के 3% से अधिक खर्च नहीं करते हैं।
घोषणापत्र के लिखे जाने के एक सौ बहत्तर साल बाद भी इसकी मूलभूत कल्पना आज भी सार्थक है।
इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सोवियत संघ के पतन और मार्क्सवाद-साम्यवाद को बदनाम करने की कोशिशों के बावजूद समाजवादी और साम्यवादी ताक़तों का आकर्षण बना हुआ है। भले ही ‘समाजवादी’ से पहले ‘लोकतांत्रिक’ शब्द जोड़ना पड़े या ‘कम्युनिस्ट’ शब्द हटाना ही पड़े, सच यही है कि मौजूदा स्थिति, जिसमें धन की भरमार है, लेकिन अत्यधिक सामाजिक असमानता है, से लोग नाराज़ हैं। पूँजीवाद और उससे उत्पन्न संकट के अप्रभावी समाधानों से कई अरबों लोगों की —यहाँ तक कि पश्चिम में भी— पूँजीवाद पर आम सहमति टूटने लगी है। पिछले साल के एक गैलप सर्वेक्षण ने दिखाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के 43% निवासियों को लगता है कि समाजवाद उनके देश के लिए अच्छा होगा। यही अमेरिकी राष्ट्रपति पद के शुरूयाती सर्वेक्षणों में बर्नी सैंडर्स के लिए बड़े समर्थन में नज़र आ रहा है।
हमें रेड बुक्स डे के अच्छे प्रदर्शन का अनुमान लगाने के लिए किसी गैलप सर्वेक्षण की ज़रूरत नहीं थी। दक्षिण कोरिया से वेनेजुएला तक, दसियों हज़ार लोग सार्वजनिक स्थानों पर अपनी-अपनी भाषाओं में घोषणापत्र पढ़ने के लिए एकत्र हुए। तमिलनाडु (भारत) रेड बुक्स डे का मुख्य-केंद्र था; 30000 लोगों ने सार्वजनिक जगहों पर- स्कूलों, गाँव की गलियों, ट्रेड यूनियन कार्यालयों में- घोषणापत्र पढ़ा। दक्षिण अफ्रीका में घोषणापत्र को सेसोथो में पढ़ा गया था; ब्राजील में इसे भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (MST) की बस्तियों और स्कूलों में पढ़ा गया; और नेपाल में इसे सड़कों पर और किसान यूनियन कार्यालयों में पढ़ा गया। कई लोगों ने पहली बार घोषणापत्र पढ़ा, जबकि अन्य लोगों – जैसे कॉमरेड शंकरैया – ने प्रेरणा लेने और सिद्धांतिक ज्ञान दोहराने के लिए इसे फिर से पढ़ा।
निवेश में नहीं लगाएं अनुमान, बिगड़ जायेंगे काम
मेंटल एकाउंटिंग
यह टेंडेंसी पैसे को अलग एकाउंट में बांटने की प्रक्रिया है जिसमें सब्जेक्टिव क्राइटेरिया पर ध्यान दिया जाता है. यह पैसे के सोर्स और उस काम के लिए किया जाता है, जिसकी जरूरत है. इस स्थिति में आपके बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर के लिए यह बहुत आसान हो जाता है कि आप सात लाख रूपये एक लिक्विड फंड (एमरजेंसी के लिए) में डाल दें और कार खरीदने के लिए 10 लाख रूपये लोन ले लें. थ्योरी के मुताबिक लोग हर एसेट ग्रुप के लिए अलग फंक्शन बनाते हैं. इससे आपका निवेश अपर्याप्त और अतार्किक दोनों हो सकता है. अगर आपको कंपाउंडिंग का महत्व नहीं पता या यह समझ नहीं आता कि 13 फीसदी कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) का 20 की जगह 30 साल में किसी पोर्टफोलियो पर क्या असर पड़ सकता है. यह आपके व्यवहार संबंधी दिक्कत ही हो सकती है जिसकी वजह से आपको निवेश के टर्म की
बारीकियां समझ न आएं.
आम तौर पर लोग बोनस शेयर को फ्री समझते हैं, लेकिन बोनस या डिविडेंड आपके निवेश पर मिलने वाले रिटर्न का ही एक पार्ट है.
जब आपको आय कर का रिफंड मिलता है तो क्या आपने खुद से कभी सवाल किया है कि आपने एडवांस टैक्स क्यों चुका दिया? आप इसे पार्टी करने या बाहर खाने पर भी खर्च कर सकते थे. यह स्थिति तब और भी ख़राब हो जाती है जब लोग ट्रेडिंग पोर्टफोलियो में पैसे का नुकसान उठाते हैं और निवेश पोर्टफोलियो से मुनाफा नहीं कमा सकते.
इसे दूसरी किस्म का बायस कहा जाता है जिसमें लॉस एवेरजन बढ़ता है. यह बायस कहता है कि हम उन शेयरों को खरीदने की गलती खुद से भी स्वीकार नहीं कर पाते जो नुकसान दे रहा है.
ओवर कॉन्फिडेंस बायस
हम कई काम करने की अपनी क्षमता को बढ़ा चढ़ा कर आंकते हैं. बहुत से लोग अपनी निवेश स्किल को भी बेहतर मानते क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग हैं और औरतें अपनी कुकिंग स्किल को, हालांकि इसके प्रमाण नहीं हैं. हो सकता है महिलाएं बेहतर निवेश कर पाएं और पुरुष बढ़िया कुकिंग. लेकिन हम उसी दायरे में सोचते हैं क्या है गुरिल्ला ट्रेडिंग जिसमें बंधे हुए हैं. अगर 50 लोगों में आप पूछें कि औसत से ऊपर कौन-कौन है तो 45 से अधिक हाथ उठ जायेंगे, 25 हाथ नहीं. हम सोचते हैं: मैं बाजार में 22 साल से हूं और मैं सब कुछ जानता हूं. यह मज़ेदार है कि कब से बाजार विशेषज्ञ बाजार गिरने या चढ़ने की भविष्यवाणी करते हैं. आप देखिये सुबह 9 बजे से ही बिज़नस चैनल्स पर लोग आ जाते हैं. यह बाजार के शुरू होने से पहले का वक्त होता है. इससे बचने का उपाय यह है कि आप निवेश डायरी बनाएं और आपने दो साल पहले जो अनुमान लगाए थे, उस पर विचार करें. इससे भी बेहतर यह है कि आप 12-15 महीने पुराने आर्टिकल पढ़ें और देखें कि कितने अनुमान सही साबित हुए.
नुकसान रोकें
हमें लगता है कि हमारे साथ ज्यादा बुरा हो सकता है, बजाय ज्यादा अच्छा होने के. मान लें कि आपने किसी शेयर में पांच लाख और दूसरे शेयर में 1 .5 लाख रूपये का निवेश किया. पहला निवेश नुकसान में रहा और अब उसकी वैल्यू तीन लाख बची. दूसरे निवेश ने अच्छा रिटर्न दिया और उसकी वैल्यू भी तीन लाख रूपये हो गयी. अब आपको तीन लाख रूपये की जरूरत है, आप किस शेयर को बेचेंगे? नुकसान रोकने से बचने का बायस कहता है कि आप फायदे वाले शेयर को बेचेंगे. इससे बचने के लिए यह ध्यान रखें कि आपने लंबी अवधि के लिए निवेश किया है और आप छोटी अवधि के अनुमान लगाने के लिए बाजार में नहीं हैं.
प्रॉफिट बुक करना या लॉस बुक करने को वास्तविक नफा-नुकसान की तरह ट्रीट करें. इसके बाद नुकसान उठाना आसान हो जायेगा.
कन्फर्मेशन बायस
आपके लिए हाथ कंगन को आरसी क्या वाली कहावत सही है? दुख की बात है कि आपकी आंख आपका दिमाग नहीं है. दिमाग आंख को यह कहता है कि क्या देखना है. शायद इसलिए आपको 800 पौंड का गोरिल्ला सामने नहीं दिखता, जब आपका दिमाग कहीं और चल रहा होता है. हमारे दिमाग को कई तरह की सूचना और इवेंट को प्रोसेस करने में बायस का सामना करना पड़ता है.
पूर्वानुमान बायस
किसी घटना के बाद आप महसूस करते हैं कि इस बारे में आसानी से भविष्यवाणी की जा सकती थी. वास्तव में यह बताने का कोई जरिया ही नहीं है कि क्या होने वाला है? उदाहरण के लिए किसी एक्सपर्ट को यह पता नहीं था कि अमेरिका में 8 -9 सालों तक शून्य से नकारात्मक ब्याज दरें रह सकती हैं. या जब कच्चे तेल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल थी, तो किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि दो साल बाद कीमतें 40 डॉलर पर जा सकती हैं. एक बार घटना घटने के बाद लोग सोचते हैं कि ऐसा क्यों हुआ? एक डायरी बनाएं और घटनाओं को नोट करें, साथ में अपनी सोच को भी. इसके बाद पुरानी डायरी से मौजूद घटनाओं को मिलाएं और अपने अनुमान की जांच करें.
हमेशा फायदा नहीं
जब लोग पैनी स्टॉक खरीदते हैं तो उनका अंदाजा होता है कि 10 रूपये का शेयर 20 रूपये का हो जायेगा. यह कैसे होगा, इस संभावना को बिलकुल भुला दिया जाता है. इसलिए वे मारुति, इंफोसिस, एचडीएफसी बैंक और हीरो मोटर्स जैसे आईपीओ को नहीं खरीदने पर अफ़सोस करते हैं. हालांकि अगर आपने साल 1992 में इनमें से हरेक में 1000 रूपये का निवेश किया होता तो अब तक आप नुकसान में होते. आईपीओ के प्रदर्शन पर नजर रखें. हम चांस को भूल जाते हैं. इसके बाद सवाल यह उठता है कि अगर हम इन शेयरों में 20 साल तक बने होते तो आज हमारे पास क्या होता?
अलग व्यवहार
ऐतिहासिक बातों का ध्यान रखना जरूरी है. एक ग्रुप एक साथ जा रहा है, तभी एक झाड़ी के पीछे किसी जानवर पर एक व्यक्ति की नजर पड़ती है. यह एक शेर है, या कोई हिरन जो खाने की तलाश में है. कोई इस बारे में श्योर नहीं है. एक व्यक्ति कहता है कि वह शेर है और सभी दौड़ लगा देते हैं. बस यहां सब कुछ बच जाता है. आप अब भी उसी स्टेज में हैं. इसलिए जब आपका पड़ोसी कहता है कि उसने टीसीएस के शेयर से पैसे बनाये हैं तो आपको लगता है कि आप भी उससे कमाई कर सकते हैं. अब आप यह जानते हैं कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?
(लेखक पी वी सुब्रमण्यम फिनांशियल ट्रेनर हैं )
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